: ३६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९प
शुद्धद्रष्टि (सम्यग्दर्शन) थाय छे. आवो शुद्धउपदेश अर्हन्तदेवना शासन सिवाय
बीजामां होय नहि. भगवाने अनंतानंत पदार्थो जाणीने कह्यां छे, तेने जे न माने ने
सर्वथा अद्वैत एक माने तो तेना मतमां साचो उपदेश होई शके नहि. पोतपोताना
द्रव्य–गुण–पर्यायथी गंभीर अनंतपदार्थो भगवाने बताव्या छे. जगतमां अनंतपदार्थो,
दरेक पदार्थमां अनंतगुणो अनंतीपर्यायो–आवा अर्थगंभीर जिनोपदेशने जे न स्वीकारे
तेने साची श्रद्धा के साचुं ज्ञान थाय नहि. भगवानना उपदेशनी साथे अज्ञानीओना
उपदेशनो मेळ मळे नहि. अज्ञानीमां क्यांक ने क्यांक विपरीतता होय छे. भगवान
जिनेन्द्रदेव अने तेमनी परंपरामां थयेला कुंदकुंदाचार्य, समंतभद्राचार्य वगेरे जैनसन्तो
सिवाय बीजाना मार्गमां शुद्धवस्तुनो उपदेश नथी. जेना मतमां अनंता द्रव्य–गुण–
पर्यायोनो स्वीकार नथी तेनो उपदेश मिथ्या छे. अहा, अनंता द्रव्य–गुण–पर्यायने
जाणनारा सर्वज्ञभगवाननो उपदेश पामीने घणा जीवो क्षायिक सम्यक्त्व पामे छे.
जिनेन्द्रभगवाननो उपदेश निश्चय सम्यग्दर्शननी प्राप्ति करावे छे. भगवाने जेवो कह्यो
तेवा शुद्धस्वभावने द्रष्टिमां लेतां जरूर सम्यग्दर्शन थशे, ने पछी क्षायिक द्रष्टि थईने
केवळज्ञान थशे. आवो शुद्धउपदेश महान भाग्ये जीवने सांभळवा मळे छे.
साचा देव केवो उपदेश आपे? तो कहे छे के तेओ ज्ञानस्वभावनो ज उपदेश
आपे छे. जो के भगवानना गंभीर उपदेशमां अनंतानंत पदार्थोनुं स्वरूप बताव्युं छे,
पण तेमां उपादेयभूत तो ज्ञानस्वभाव ज कह्यो छे. सम्यग्दर्शन थतां ज्ञान
निजस्वभावमां आव्युं; ते ज्ञान ज्ञानस्वभावना आश्रये स्वयमेव वृद्धिगत थतुं थतुं
केवळज्ञान थाय छे. माछलीनां ईंडानुं द्रष्टांत आपीने कहे छे के जेम रेतीमां दाटेलुं
माछलीनुं इंडुं स्वयंवधे छे, तेम स्वभाव तरफ झुकेलुं ज्ञान स्वयं वधतुं वधतुं केवळज्ञान
थाय छे. आवुं ज्ञान आनंदकारी छे, मुक्तिनुं सहकारी छे; ने तेनो उपदेश भगवाने दीधो
छे. सम्यग्द्रष्टिने ज्ञानना वेदन वडे ज्ञान स्वयं वधतुं जाय छे. परम आनंदथी भरेलो
सर्वज्ञस्वभाव अंदर छे तेनो उपदेश भगवान दे छे. ते स्वभावना लक्षे एकाग्र थतां
थतां केवळज्ञान थाय छे. ज्ञाननी वृद्धि ईन्द्रियोथी के रागथी थती नथी पण स्वभावना
सम्यग्ज्ञान वडे ज ज्ञाननी शुद्धि ने वृद्धि थाय छे; ज्ञानस्वभावना आश्रये ज्ञान
स्वयमेव वधे छे ने केवळज्ञान थाय छे. आनुं नाम मोक्षनो मार्ग ने आ वीतराग
भगवाननो उपदेश!
(विशेष हवे पछी)