विना कोई कंई पण जाणवा ईच्छे, तो ते बनवायोग्य नथी; मात्र ते ज मुख्य होय
तो ज बीजुं कांई जाणी शकाय.” आ रीते जीवनुं ऊर्ध्वपणुं छे, मुख्यपणुं छे, तेना
अस्तित्वमां सर्व पदार्थो जाणी शकाय छे. बधाने जाणनारो पोते, छतां पोते पोताने
भूली रह्यो छे!
(पण) जाणनारने मान नहि, कहिये केवुं ज्ञान!
नथी अनुभवतो पण रागादिपणे ज पोताने अनुभवे छे.–आ रीते ‘अनुभूतिरूप जे
ज्ञान छे ते ज हुं छुं’–एवुं आत्मज्ञान नहि होवाथी ते अज्ञानीने ज्ञानस्वरूपमां
एकाग्रतारूप मोक्षमार्ग सिद्ध थतो नथी, ते तो रागादिमां ज एकाग्रपणे अज्ञानभावथी
संसारमां रखडे छे.
मिथ्यात्व छे, अप्रतिबुद्धपणुं छे. ते केम टळे तेनी आ वात छे.
रचना करनार छे ते ज हुं छुं; रागनी रचना करनारो हुं नहि, जडनी–भाषानी–शरीरनी
रचना करनारो हुं नहि; तेने जाणनारूं जे ज्ञान, ते ज्ञानने रचनारो ज्ञानस्वरूप हुंं छुं–
एम परभावोथी पृथक्करण करीने ज्ञानस्वरूपे पोते पोताने अनुभवमां लेवो तेनुं नाम
ज्ञाननुं सेवन छे, ते जीवराजानी सेवा छे, ने ते ज मोक्षमार्ग छे.