भिन्न आत्मानो अनुभव कर. देह साथे तारे एकता नथी पण भिन्नता छे...तारा
चैतन्यनो विलास देहथी जुदो छे. माटे तारा उपयोगने पर तरफथी छोडीने
अंतरमां वाळ.
प्रतिकूळता) आवे तोपण तेनी द्रष्टि छोडीने अंतरमां जीवता चैतन्यस्वरूपनी द्रष्टि
कर. “
तारा प्रयत्नने छोडी न दईश. परंतु मरण जेटली प्रतिकूळता सहन करीने पण तुं
आत्मानो ताग लेजे...तेनो अनुभव करजे. मारे मारा आत्मामां ज जवुं छे...तेमां
वच्चे परनी डखलगीरी केवी? प्रतिकूळता केवी? बहारनी प्रतिकूळतानो आत्मामां
अभाव छे–एम उपयोगने पलटावीने आत्मामां वाळ,–आम करवाथी पर साथे
एकताबुद्धिरूप मोह छूटी जशे...ने तने परथी भिन्न तारुं चैतन्यतत्त्व आनंदना
विलाससहित अनुभवमां आवशे.
संबोधन करीने समजावशे के, अमे आटलुं आटलुं समजाव्युं छतां जे जीव देहने–कर्मने
तथा रागने ज आत्मानुं स्वरूप माने छे ते जीव मूढ छे, अज्ञानी छे, पुरुषार्थहीन छे.
परने ज आत्मा मानी मानीने ते आत्माना पुरुषार्थने हारी बेठो छे. रे पशु जेवा