Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९प आत्मधर्म : ११ :
पर्यायवडे पर्याय नथी पमाती पण पर्यायवडे द्रव्य पमाय छे, एटले पूर्व
पर्यायवडे वर्तमान पर्याय थई एम नथी. वर्तमान पर्यायने वर्तमानकाळे द्रव्ये प्राप्त करी
छे, ने ते पर्यायवडे द्रव्य ज प्राप्त करायुं छे. आम ते ते काळे पोतपोतामां ज द्रव्य–
पर्यायनी संधि छे, पण परनी साथे तेनी संधि नथी. आवा निर्णयमां स्व–परनुं
भेदज्ञान थईने स्वसन्मुखतावडे सम्यग्दर्शनादि अपूर्व दशा प्रगटे छे. अहो!
वीतरागमार्गे अलौकिक वस्तुस्थिति प्रकाशीत करी छे.
गणधरदेवने चारज्ञानरूप पर्याय छे ते पर्यायवडे तेमनुं आत्मद्रव्य पमाय छे, ने
ते पर्यायने तेमना आत्मद्रव्ये प्राप्त करी छे, पण तीर्थंकरदेववडे ते पर्याय प्राप्त कराती
नथी. क्षायिकसम्यक्त्वपर्याय केवळी के श्रुतकेवळी भगवानवडे नथी पमाती, पण ते
आत्मद्रव्य पोते पोतानी ते पर्यायने प्राप्त करे छे, ने ते पर्यायवडे तेनुं पोतानुं
आत्मद्रव्य पमाय छे.
आत्मानी पर्यायवडे आत्मद्रव्य ओळखाय, ने जडनी पर्यायवडे जडद्रव्य
ओळखाय.
आत्मानी पर्यायवडे परद्रव्य न ओळखाय, ने परनी पर्यायवडे आत्मद्रव्य न
ओळखाय.
दरेक पर्याय पोतपोताना द्रव्यने ज प्रसिद्ध करे छे ‘हुं आ द्रव्यनी पर्याय छुं.’
एक द्रव्यना गुण बीजा द्रव्यवडे नथी थता तेम एक द्रव्यनी पर्याय पण बीजा
द्रव्यवडे नथी थती.
अहो, द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप वस्तु केटली स्वतंत्र छे! आवुं स्वरूप ओळखे तो
पोताना गुण–पर्याय पोताना द्रव्यमां शोधे, एटले स्वसन्मुख थाय; ने परमां पोताना
गुण–पर्याय न शोधे एटले पर साथे एकताबुद्धि छूटे. आ रीते अपूर्व भेदज्ञान थाय छे.
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं यथार्थ स्वरूप ओळखतां आखा जगतनी वस्तुस्थिति
ओळखाई जाय छे. भाई तारी केवळज्ञान पर्यायने तारा द्रव्यमां शोध, अन्यमां न
शोध. तारी सम्यग्दर्शनपर्यायने तारा द्रव्यमां शोध, अन्यमां न शोध; निमित्तमां न
शोध, रागमां न शोध, पूर्वपर्यायमां न शोध. केमके तारी पर्याय तारा द्रव्यवडे पमाय छे,
परथी निमित्तथी रागथी के पूर्वपर्यायथी ते पमाती नथी. तारी एक्केय पर्याय के गुण
एवा नथी के बीजा वडे ते पमाय; ते तारा स्वद्रव्य वडे ज पमाय छे,–माटे देख तारा
द्रव्यमां!
स्वद्रव्यनुं अवलोकन करतां ज तेना वडे अपूर्व आनंददशा पमाशे.