: १२ : आत्मधर्म : पोष : २४९प
पीळाश अने कुंडळ वगेरेथी जुदुं सोनुं नथी, तेम गुणो ने पर्यायोथी जुदुं द्रव्य
नथी. द्रव्य पोते गुण–पर्यायस्वरूप छे, गुण–पर्यायनो आत्मा ते द्रव्य; गुणपर्यायात्मक
द्रव्य–एवुं तेनुं स्वरूप छे. (गुणपर्ययवत् द्रव्यम्ः तत्त्वार्थसूत्र)
वस्तुनो विस्तार त्रणमां छे: द्रव्य–गुण–पर्याय.
वस्तुना विस्तारमां पोताना द्रव्य–गुण–पर्याय सिवाय बीजुं कांई न आवे; ने
आ वस्तु विस्तरीने बीजा कोईमां जाय नहि. पोताना गुण–पर्याय द्रव्यने पामे, ने
द्रव्य–गुण–पर्यायने पामे; बस, तेमां वस्तुनुं सर्वस्व आवी जाय छे.
तारो विस्तार केटलो? के तारा ज्ञानादि अनंत गुणो ने तेनी पर्यायो, तेमां तारुं
द्रव्य छे; ए द्रव्य वडे ज पोताना गुण–पर्याय प्राप्त कराय छे, अर्थात् द्रव्य पोताना गुण
पर्यायथी जुदुं नथी. परथी जुदुं. निमित्तथी जुदुं, पण पोतानी पर्यायथी जुदुं नहि.
पर्यायनी प्राप्ति पर्यायमांथी नथी, पर्यायनी प्राप्ति द्रव्य वडे ज छे. बस, आवो निर्णय
करतां पर्यायबुद्धि न रही, एटले ते काळे द्रव्य वडे निर्मळ पर्याय प्राप्त थई छे.
आ रीते अरिहंतदेवना मार्गमां द्रव्य–गुण–पर्यायनुं यथार्थ स्वरूप ओळखतां
जरूर मोहनो नाश थईने सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
हे जीव! आवो जिनमार्ग पामीने तुं परम उद्यम कर.
मरण टाणे आनंद
मरण टाणे कोई शरण नथी.......पण जो मरण आव्या
पहेलां शरणभूत स्वभावने शोधी ल्ये तो आनंदपूर्वक देह छूटे.
एने मरण टाणे दुःख नथी, मरण टाणे आनंद छे. देहथी भिन्न
आत्माने जाण्यो त्यां मरण पोतानुं छे ज क्यां? पछी मरणनो
भय केवो?
भाई, अत्यारे पण आत्माने कोण शरण छे? पोताना
स्वभाव सिवाय बीजुं कोई शरण नथी. अत्यारे, के मरण टाणे, के
मरण पछी बीजा भवमां, जीवने पोताना निजानंदस्वरूप चैतन्य ज
शरणरूप छे, बीजुं कोई शरणरूप नथी–आवुं भान करे तेने
अशरणपणे देह न छूटे पण आनंदनुं वेदन करतां करतां देह छूटी
जाय...ने समाधिमरणपूर्वक आराधना साथे लईने चाल्यो जाय.