Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : आत्मधर्म : १प :
पांखनी हूंफ वडे ईंडाने पोषे छे, पण काचबी तो वगर–पांखे मात्र द्रष्टिना बळे ईंडाने
पोषे छे. तेम सम्यग्द्रष्टि जीव वगर–पांखे एटले वगरपढये द्रष्टिना बळे पोताना
ज्ञानबीजने पोषे छे. शुद्धात्मामां द्रष्टिथी तेने भावश्रुत वधतुं जाय छे. बार अंगनुं ज्ञान
बहारथी भणातुं नथी पण अंदरथी ज खीले छे, अने ते पण शुद्धात्मा उपर जेने द्रष्टि
होय तेने ज खीले छे. मिथ्याद्रष्टिने बार अंगनुं ज्ञान कदी खीलतुं नथी. भले, भक्ति–
पूजा–स्वाध्यायना शुभभाव हो, पण तेनी किंमत केटली? के पुण्य बंधाय एटली; पण
तेनाथी मोक्षमार्ग न मळे. मोक्षमार्गरूप धर्म ते तो आत्माना निर्विकल्प सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप वीतराग परिणाम छे.
एकेक आत्मा सर्वज्ञस्वभावी छे ते स्वभाव उपर मीट मांडतां ज्ञानप्रकाश
वगरपढये पण खीलतो जाय छे. आवा स्वभावनी द्रष्टि करावे ते शुद्ध उपदेश छे.
बहारथी ज्ञान प्रगटवानुं बतावे तो ते उपदेश शुद्ध नथी. पंडित पढीपढीने पढे पण
अंतरनुं तो भान नहि, –एवी अंतरद्रष्टि वगरनी पंडिताई तो कण वगरना फोतरां
खांडवा जेवी छे.
काचबीनुं ध्यान निरंतर ईंडा तरफ छे तेम सम्यग्द्रष्टिनुं ध्यान (द्रष्टिनुं जोर)
निरंतर स्व–ध्येय उपर छे, तेमां ज तेनी गाढ रुचि छे, तेथी निरंतर तेनुं ज्ञान पोषातुं
जाय छे. पंखी तो पांखथी सेवे छे ने काचबी मात्र द्रष्टिवडे सेवे छे. तेम सम्यग्द्रष्टिना
परिणाम शुद्धात्मामां ज रंजायमान छे, पोताना शुद्धात्मा सिवाय बीजा कोई पदार्थ वडे
ते रंजित थता नथी, द्रष्टि शुद्धात्मा वडे ज रंगायेली (रंजित) छे; आवी अंतरद्रष्टि वडे
ते ज्ञानने सेवे छे. वगर भण्ये, वगर वांच्ये अंदरनी निर्विकल्प शुद्धद्रष्टि वडे ज तेनुं
ज्ञान वध्या करे छे. आत्मानुं स्वसंवेदन करवारूप ज्ञान–शक्ति दिनप्रतिदिन ज्ञानीने
वधती जाय छे. आवुं ज्ञान ने आवी द्रष्टिवाळा असंख्याता तिर्यंचजीवो पंचमगुणस्थाने
बिराजी रह्या छे; नरकमां ने स्वर्गमांय आवी द्रष्टिवाळा असंख्याता जीवो
चोथागुणस्थाने वर्ती रह्या छे. तिर्यंचने शास्त्रनी भाषा वांचतां–लखतां के बोलतां भले
न आवडे पण अंदरमां अपूर्व भावश्रुतवडे शुद्धात्मा तेणे पकडी लीधो छे, स्वज्ञेयने
जाणी लीधुं छे. परज्ञेयसंबंधी ज्ञान ओछुं–वधतुं हो ते जुदी वात छे, पण स्वज्ञेयने
पकडवारूप अचिंत्यज्ञानशक्ति ज्ञानीने वधती ज जाय छे. ए कांई लख्यामां न आवे.
जुओ, केवळज्ञान थया पछी महावीर भगवाननी वाणी राजगृहीमां विपुलाचल पर
समवसरणमां पहेलीवार नीकळी ने गौतम गणधरे ते सांभळी, पछी बे घडीमां
बारअंगनी रचना करी. लख्ये–वांच्ये ए बार अंगनो पार न आवे. जेम अत्यारे
भणतरमां पुस्तको गोखीगोखीने शीखे