: पोष : २४९प आत्मधर्म : ३९ :
(प४) धर्मनुं मूळ शुं छे? (६१) कई त्रण वस्तु भेगी करवाथी मोक्षमार्ग थाय छे?
(पप) जीव संसारमां केम रखडयो? (६२) आत्माने ओळखे नहि, पण चारित्र पाळे तो
(प६) सौथी पहेलो धर्म क््यो? मोक्ष थाय?
(प७) सौथी मोटुं पाप शुंं? (६३) साचुं चारित्र ने मुनिदशा कोने होई शके?
(प८) सम्यग्ज्ञान एटले शुं? (६४) जैन कोने कहेवाय?
(प९) सम्यग्ज्ञानथी पोतानो आत्मा केवो समजाय?
(६०) जेने साचुं चारित्र होय तेने शुं कहेवाय?
(आ प्रश्नोना जवाब पाठ ८ थी १प सुधीमां मळशे.)
माटुंगा (मुंबईथी) थी कोलेजना अभ्यासी गीताबेन तथा जयेशभाई लखे छे
के ‘अमने भाई–बहेनने आत्मधर्मना सवाल–जवाबमां खूब रस पडे छे. स्वाध्याय
मंदिर जवुं आत्मधर्म वांचवुं ते तो अमारुं हंमेशनुं कार्य छे. बालविभागमां जोडाया
पछी अमारा जीवनमां घणुं परिवर्तन थई गयुं छे. मनोवतीनी दर्शनकथा वांच्या पछी
अमने पण तेना जेवी प्रतिज्ञा लईने अमारुं जीवन धन्य करवानी आशा जागी छे.
प्रश्न:– वर्तमानकाळमां सर्व प्रथम मोक्ष जनार कोण? (जयश्रीबेन–रांची)
उत्तर:– अनंतवीर्यस्वामी (–भरतचक्रवर्तीना एक भाई.) तेमणे आ
अवसर्पिणी काळमां भरतक्षेत्रमां मोक्षना दरवाजा खोल्या. (जुओ, “भगवान
ऋषभदेव”पानुं १प९)
घाटकोपरमां जिनमंदिरना शिलान्यास प्रसंगे त्यांनी उत्साही दि. जैन
भजनमंडळीए प्रसंगने लगता भजनो गायेला, ते बालविभागना सभ्य श्री
रमेशभाईए मोकल्या छे; तेमांथी एक गीत अहीं आप्युं छे:–
जिनालय रूडा बंधाशे...(खमा मारा...ए राग)
ए...आज दिवस अनुपम ऊग्यो ने धन्य धरती आकाश नानुं गाम पवित्र
बन्युं, मुरत मंदिरना थाय. धन्य धन्य घाटकोपर गाम, जिनालय रूडा बंधाशे, धन्य
धन्य धरती आकाश, मंदिर रूडा रचाशे.
पुन्य अमारा आज फळ्या रे,
महाभाग्ये अवसर आव्या. जिना०....
नेमीनाथ प्रभुजी अहींया बिराजशे,
भक्तोना थाशे उद्धार. जिना०......
आवी आतमनी वातु जाणी लईए,
जाणीये समय केरो सार. जिना०.......
कहान गुरुए धर्मध्वज फरकावी,
खोल्या छे मोक्ष केरा मार्ग जिना०.......
समयसारनो सार बतावी,
असार बताव्यो संसार. जिना०......
सोनगढने यात्रा धाम बनाव्युं,
बोलो भक्तो जय जय कार. जिना०........
देवोना वृंदो पुष्प वृष्टी करतां,
“कमल” हैयुं पुलकीत थाय. जिना०.......