
रीते वांचीए छीए, ने ज्ञान मेळवीए छीए. तेमां जे पुनरावर्तनरूप परीक्षा विभाग
शरू कर्यो ते घणुं ज सारूं कर्युं छे, तेथी अमारो रस वध्यो छे, ने आ योजना बदल खूब
ज धन्यवाद! अमारी भावना छे के आत्मधर्म महिनामां एक वखत आवे छे तेने बदले
बे वखत आवे. (भाईश्री, हजारो जिज्ञासुओ पण तमारा जेवी ज भावना धरावे छे.)
वातावरण जमावे छे... आवी प्रवृत्तिनो विकास थाय तेम सौ ईच्छे छे.
छे. एटले मात्र भारत नहि, अमेरिका ने आफ्रिका, युरोप वगेरे पण सिद्धभूमि छे.
त्यांथी पण अनंता जीवो सिद्धपदने पाम्या छे.
ज्ञातिना ब्राह्मण छे; सोनगढ आवी गुरुदेवनी वाणी सांभळीने तेमने थयुं के आवा
जैनधर्म सिवाय क्यांय उद्धार नथी...अहो, गुरुदेव तो बतावे छे के ‘हुं जिनवरनो
सन्तान छुं.’ तेमनी साथे बीजा त्रीसेक मित्रो (जेमां हरिजनो ने कोळी भाईओ पण
छे–तेओ) भजनमंडळी निमित्ते भेगा मळीने जैनधर्मना अभ्यासनो प्रयास करे छे.
उत्तम जैनसंस्कारो पामीने तेओ जीवनने उज्जवळ करे एम ईच्छीए छीए. तेमना
लखाणनो योग्यभाग ‘उपकार–अंजलि’ मां लईशुं.
मोकले...अने, हे भारतना भक्तो! तमे हवे क्यारे जागशो?
बीजी माताने पेट अवतार धारण न करवो