: पोष : २४९प आत्मधर्म : ४१ :
पडे–एवी भावना भावीए छीए. (–राजेन्द्र जैन कलकत्ता स. नं. ११८)
* बालमित्रोने धन्यवाद आपतां जोरावरनगरथी रजनीकान्त जैन लखे छे के
बालमित्रो तमे घणुं ज सरस लखो छो तेथी मने अने मारा मित्रोने वांचीने खूब
आनंद थाय छे. अने दुनियामां आत्मधर्म तथा जैनशासन गूंजतुं थाय तेवी भावना
भावुं छुं.
* कल्पनाबेन जैन लाठी: प्रभुना दर्शन कर्या वगर तमे दूध पण पीता नथी,–ते
माटे धन्यवाद!
* भरत जैन (लाठी) लखे छे: के आत्मधर्म आवतांवेंत प्रश्नोनो उत्तर
शोधवामां लागी जईए छीए. आत्मधर्म माटे खूब राह जोईए छीए. महिनो पूरो
थतां घणीवार लागे छे, तेथी जो पाक्षिक आवे तो सारूं.
* आकोलाना भाई–बेनो लखे छे के : जैनबाळपोथीनो अभ्यास करावीने
परीक्षा लेवानो आपनो आ कार्यक्रम बहु उत्तम अने आदर्श भावना जगाडनार छे.
अमारा जेवा हजारो बाळकोने घरे बेठा उत्तम अभ्यासनी तक प्राप्त थई छे. (बीजा
पण अनेक बाळकोना आवा उत्साह भर्या पत्रो आव्या छे.)
* मोशी (आफ्रिका) थी रणमलभाई ‘आत्मवैभव’ वांचीने लखे छे के गुरुदेव
पासे ज्ञाननुं खजानुं भरेलुं छे, ते खोलीने खूब उपकार करी रह्या छे. अध्यात्मरसनुं
पान करावीने गुरुदेव आनंद करावे छे.
* पुनरावर्तनरूप परीक्षामां केटलाय जिज्ञासुओ होंशथी भाग लई रह्या छे, ने
आ विभाग माटे हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करी छे. स्थळसंकोचने कारणे बधाना पत्रो
अहीं आपेल नथी.
* “अहाहा, ज्ञानीओए शुं आत्मानुं वर्णन कर्युं छे!–अने जाते अनुभव्यो छे.
केवो छे ते आत्मा? सहज स्वभाव सहज आनंदी, अने एनी ४७ शक्तिओनी छोळो
ज्ञानमां ऊडे तेवी छे. अहा! आत्माना एकेक गुणनी शी वात लखवी! पू. गुरुदेवे
पंचमकाळमां मेहुला वरसाव्या छे. तारी आत्मलक्ष्मीना आत्मवैभवना गाणां गवाय छे,
त्यारे नहि सहज तो पछी क््यारे समजीश?
–स्व. जयंतिलाल जगजीवन (सुरेन्द्रनगर) ना पत्रमांथी.
* ‘अमे अमदावादी अलबेला’ ना धार्मिक गीत साथे स. नं. १०० लखे छे के
“अमारा स्नेही समान आत्मधर्म मळ्युं. आ वखतनुं आत्मधर्म घणुं रसप्रद लाग्युं अने
तेमां परीक्षानी योजना बहु गमी.” (अंजलिना रंगबेरंगी बधा लखाणो मळ्या छे.)
* शुं परजीवनी दयानो भाव ते मिथ्यात्व छे? –ना. तो शुं परजीवनी दयानो
भाव ते धर्म छे? जी ना! –जयजिनेन्द्र