Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: र : आत्मधर्म : पोष : २४९प
मोक्षनगरीमां
प्रवेशवानो अवसर
हे जीव! चारगतिना चक्करमांथी छूटीने
मोक्षनगरीमां प्रवेशवानो अवसर आव्यो छे...तो
अंधनी जेम तुं आ अवसर चूकीश मा.
अरे, अनंतकाळना परिभ्रमणमां रखडता जीवे चार गतिमां अवतार करी करीने
महा दुःखो भोगव्या; एमां क्यारेक मांडमांड मनुष्य थयो, ने ८४ ना चक्करमांथी बहार
नीकळवानो अवसर हाथमां आव्यो, अत्यारे बेदरकार थईने बीजे काळ गुमावीश तो हे
भाई, तुं अवसर चूकी जईश. (जुओ चित्र) एक अंधमनुष्यने शिवनगरीमां प्रवेशवुं
हतुं; नगरीना गढने एक ज दरवाजो हतो. कोई दयाळुए तेने मार्ग देखाडयो के आ
गढनी रांगे हाथ लगावीने चाल्या जाओ, फरतां फरतां दरवाजो आवे एटले अंदर पेसी
जाजो, वच्चे क्यांय प्रमादमां अटकशो नहि. ए प्रमाणे गढने हाथ लगाडीने ते
अंधमनुष्य फरवा लाग्यो, पण वच्चेवच्चे प्रमादी थईने घडीकमां पाणी पीवा रोकाय,
घडीकमां शरीर खजवाळवा रोकाय, एम करतां करतां