Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९प आत्मधर्म : ३ :
ज्यां दरवाजो आववानी तैयारी थई के बराबर ते ज वखते भाईसाहेब माथुं
खजवाळता–खजवाळता आगळ चाल्या गया, ने दरवाजो तो पाछळ रही गयो. आम
शिवनगरीमां प्रवेशवानो अवसर चूकीने पाछो चकरावामां पड्यो. तेम आ चोरासीना
चकरावामां मांड मनुष्यअवतार मळ्‌यो, मोक्षनगरीमां प्रवेशवानो अवसर आव्यो, ने
मोक्षनो दरवाजो देखाडनारा संत मळ्‌या; तेमणे करुणा करीने मार्ग देखाडयो के अंदरना
चैतन्यमय आत्माने स्पर्शीने चाल्यो जा...एटले मोक्षनगरीमां प्रवेशवानो
‘रत्नत्रयदरवाजो’ आवशे. हवे एने बदले अंधमनुष्यनी जेम जे अज्ञानी जीव रागमां
ने देहनी क्रियामां धर्म मानीने तेनी संभाळमां (–देहबुद्धिमां) रोकाय छे, ने चैतन्यने
ओळखवानी दरकार करतो नथी, ते मोक्षनगरीमां प्रवेशवानो आ अवसर चुकी जशे ने
पाछो चोरासीना चक्करमां पडीने चारगतिमां रखडशे. माटे हे जीव! ते अंधनी जेम तुं
आ अवसर चुकीश मा. देहनी के मान–मोटाईनी दरकार मुकीने आत्माना हितनी
संभाळ करजे. अनंतवार गाजर–मूळामां मफतना भावे वेचाणो त्यां कोनां मान
करवा? एकेन्द्रियना अवतारमां गाजर के मूळामां अवतर्यो होय, ने बजारमां
शाकवाळाने त्यां ते गाजर–मूळाना ढगलामां पड्यो होय. शाक लेनारनी साथेनो नानो
छोकरो शाक साथे गाजर के मूळो मफत मांगे ने शाकवाळो ते आपे; त्यारे तेमां
वनस्पतिकायपणे जीव बेठो होय ते पण मूळानी साथे मफतमां जाय.–ए रीते मफतना
भावे अनंतवार वेंचायो. अने अत्यारे मनुष्य थईने तुं मफतनो मान–अपमानमां
जीवन केम गुमावे छे! भाई, अल्पकाळनो आ मनुष्य–अवतार, तेमां आत्महित माटे
शुं करवानुं छे तेनी दरकार कर.
जेम मनुष्योने चिंतामणि क्यारेक महा पुण्ये मळे छे, वारंवार नथी मळता,
तेम संसारमां जीवोने एकेन्द्रियमांथी पंचेन्द्रियपणानी तो शी वात, पण
बेईन्द्रियपणुं मळवुं ते पण चिन्तामणि पामवा जेवुं दुर्लभ छे. क्यारेक विशुद्ध
परिणामना बळथी जीव एकेन्द्रियमांथी नीकळीने त्रसमां आवे छे. अरे, ईयळ अने
कीडी थवुं पण ज्यां दुर्लभ त्यां मनुष्यपणानी दुर्लभतानी तो शी वात? भाई! तुं
तो मनुष्यपणा सुधी आव्यो छो, तो भवभीरु थईने हवे एवो उपाय कर के आत्मा
चारगतिमां दुःखथी छूटे.
(आवा भाववाही चित्रो अने लखाणोवाळुं पुस्तक–‘वीतरागविज्ञान’ भेट
मेळववा माटे तुरत आत्मधर्मना ग्राहक बनो.)