: पोष : २४९प आत्मधर्म : प :
तेनी जात जुदी छे. जेम मीठुं ओगळीने खारा पाणीरूपे थाय छे, तेम उपयोग
ओगळीने कदी रागरूप के जडरूप थई जतो नथी. उपयोग तो सदाय उपयोगरूपे ज रहे
छे.
प्रवाहीपणाने अने खारापणाने विरोध नथी, बंने एकपणे साथे रही शके छे,
पण तेनी जेम उपयोग अने जड बंने साथे एकपणे रही शकता नथी, तेमने तो
एकपणे रहेवामां विरोध छे. आत्मा तो उपयोगरूप छे, ने शरीर रागादि तो
अनुपयोगरूप छे, आत्मानो उपयोग ओगळीने कदी जड के राग साथे तन्मय थाय
नहि. माटे पुद्गलने अने जीवने एकपणे अनुभववो ते मिथ्या छे. जड ने चेतन कदी
पण एक थई शके नहि, तेथी तुं सर्वप्रकारे प्रसन्न था; चित्तने ऊजळुं करीने
सावधानपणे स्वद्रव्यने पोतापणे अनुभवमां ले. आवुं भेदज्ञान करतावेंत आत्मा
आनंदरूप–प्रसन्नरूप थशे. देहबुद्धिमां दुःख छे; देहथी भिन्न उपयोगस्वरूप हुं छुं–एवी
आत्मबुद्धिमां सुख छे.
अरे, देह ने जीव सदाय पोतपोताना लक्षणे जुदा ज छे; जुदा छे तेने जुदा
जाणतो नथी ने एक माने छे; एक माने तोपण ते बंनेने एकपणुं कदी थई गयुं नथी.
भाई! जुदा छे तेने जुदा जाण–तो तने तारा स्वद्रव्यनी प्राप्तिथी आनंद थशे–प्रसन्नता
थशे.
जगतमां चेतन ने जड भले एक साथे होय, पण ते बंने एक थई जता नथी,
पोतपोतानुं स्वरूप छोडता नथी; पोतपोताना स्वरूपे ज रह्या छे. एक काळे के एक क्षेत्रे
भले हो, पण स्वरूपे एक नथी. निजनिजलक्षणे बंने जुदेजुदां ज रह्यां छे, तारो भाग
जुदो, ने जडनो भाग जुदो; उपयोग ते तारो भाग छे, ने जड ते पुद्गलनो भाग छे.–
एम तारो भाग जुदो लईने तुं खुशी था! तारो भाग कोई लूंटी गयुं नथी, एवो ने
एवो जुदो ज तारो भाग छे. पुद्गलना भागनो धणी थवा जईश तो दुःखी थईश.
एनाथी भिन्न उपयोगरूप तारो भाग छे तेने ज अनुभवमां ले. तेना अनुभवथी तने
आनंद थशे.
जड वडे तारुं अस्तित्व जराय दुभायुं नथी, दबायुं नथी, जडथी जुदुं एवुं ने
एवुं तारुं अस्तित्व अनादिथी छे; माटे उल्लसित थईने तारा स्वद्रव्यने देख. पुद्गल के
रागादि तारा उपयोगस्वरूपमां घूसी गया नथी, बहार ज रह्या छे, माटे आवा
उपयोगस्वरूपने अनुभवमां लईने आनंदित था. जेम घणा काळथी खोवाई गयेली
वस्तु घरमां जडे ने आनंदित थाय, तेम अनादिथी भूलायेलो, जड साथे एकत्वबुद्धिथी
खोवायेलो, तारो आत्मा तने तारामां जडथी जुदो बताव्यो, तो हवे एवी ने एवी
तारी स्ववस्तुने पामीने तुं आनंदित था.