Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९प आत्मधर्म : १७ :
हे भव्य तारा कल्याणने माटे आ हितोपदेश तुं सांभळ!
आचार्य–उपाध्याय–साधुने, तेमज
सम्यग्द्रष्टि जीवोने.
१प. धर्मात्माने शुं जोईए छे?
धर्मात्माने केवळज्ञान अने वीतरागता
जोईए छे.
१६. योगीजनो सदा कोने ध्यावे छे?
अनंत सुखधाम एवा निजात्माने.
१७. वीतरागविज्ञानने जे वंदन करे ते
रागने सारभूत माने?
कदी न माने.
१८. गृहस्थने चोथा गुणस्थाने
वीतरागविज्ञान होय?
हा, अंशे होय.
१९. मोक्षनुं कारण
कोण?...वीतरागविज्ञान.
२०. शुभरागने मोक्षनुं कारण केम न
कह्युं?
केमके ते वीतराग–विज्ञानथी विरुद्ध छे.
२१. वीतरागविज्ञाननी शरूआत क्यांथी
थाय?
चोथा गुणस्थानथी.
२२. सावधानी एटले शुं?
शुद्धस्वभावनी सन्मुखता; ते तरफनो
उद्यम
२३. आत्मानुं स्वसंवेदन केवुं छे?
स्वसंवेदन वीतराग छे.
२४. साधकभूमिकामां राग तो होय छे?
भले हो, पण जे स्वसंवेदन छे ते तो
वीतराग ज छे.
२प. जे जीव हित चाहतो होय तेणे शुं
करवालायक छे?
वीतरागविज्ञान करवालायक छे.
२६. जेणे वीतरागविज्ञानने ओळखीने
नमस्कार कर्या तेने शुं थयुं?