: १८ : आत्मधर्म : महा : २४९प
तेने पोतानी पर्यायमां पण अंशे
वीतरागविज्ञान प्रगट्युं.
२७. त्रणलोकनुं दोणुं वलोवीने संतोए
तेमांथी सार शुं काढयो?
‘तीन भुवनमें सार वीतरागविज्ञानता.’
२८. रागथी धर्म मानवो ते केवुं छे? ते
तो पाणीने वलोववा जेवुं निःसार छे.
२९. बाह्यद्रष्टिजीवो शेमां संतुष्ट थई
जाय छे?
तेओ शुभरागमां ज संतुष्ट थई जाय छे.
३०. जीव चारगतिमां केम रखडयो?
वीतरागविज्ञानना अभावने लीधे.
३१. चारगति कई छे?
तिर्यंच, नरक, मनुष्य, देव.
३२. चारगति सिवायनी पांचमी गति
कई? मोक्ष
३३. मोक्षगति केवी छे?...ते
परमसुखरूप छे.
३४. परमसुखरूप मोक्षदशा शेनाथी
पमाय छे?
वीतरागविज्ञानथी.
३प. दुःखथी छूटवा श्रीगुरु शेनो उपदेश
आपे छे?
वीतरागविज्ञानरूप मोक्षमार्गनो; एटले
के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने अंगीकार
करवानो उपदेश आपे छे.
३६. ते उपदेश कई रीते सांभळवो?
पोताना हितने अर्थे चित्तने स्थिर करीने.
३७. जीवे शेनो स्वाद कदी नथी चाख्यो?
वीतरागी परमानंदनो स्वाद कदी नथी
चाख्यो.
३८. मनुष्यगतिमां केटला जीवो छे?
असंख्याता.
३९. नरकगतिमां केटला जीवो छे?
असंख्याता.
४०. देवगतिमां केटला जीवो छे?
असंख्याता.
४१. तिर्यंचगतिमां केटला जीवो छे?
अनंता.
४२. त्रसजीवो केटला छे?...असंख्याता.
४३. मोक्ष पामेला जीवो केटला
छे?...अनंता.
४४. जीवने दुःखनुं कारण शुं छे?
पोतानो मिथ्यात्वभाव
४प. ते मिथ्यात्वभाव केम मटे?
साचा भेदज्ञान वडे सम्यग्दर्शन प्रगट
करवाथी.
४६. संतनी पहेली शिक्षा शी छे?
तारा दोषे तने बंधन छे, माटे ते दोष
टाळ.
४७. जीवनो मुख्य दोष कयो छे?
दोष एटलो के परने पोतानुं मानवुं, ने
पोते पोताने भूली जवुं.
४८. एकेन्द्रिय जीवोने विचारशक्ति छे?
ना, तेनामां ज्ञान छे, पण मन के
विचारशक्ति नथी.
४९. गुरु एटले कोण?
गुरु एटले रत्नत्रयधारी दिगंबर सन्त;
अर्थात् ज्ञान–दर्शन–चारित्ररूपी गुणोमां जे
मोटा ते गुरु.