Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९प आत्मधर्म : १९ :
प०. एवा गुरुओए जगत पर शो
उपकार कर्यो छे?
वीतरागविज्ञानरूप मोक्षमार्गनो उपदेश
आपीने श्रीगुरुओए जगतना जीवो उपर
मोटो उपकार कर्यो छे.
प१. कुंदकुंदस्वामीना गुरुए तेमने केवो
उपदेश दीधो’ तो?
‘अमारा गुरुओए अनुग्रहपूर्वक अमने
शुद्धात्मानो उपदेश दीधो हतो’–एम
कुंदकुंदस्वामी कहे छे.
प२. उपदेशवडे सन्तो शुं देखाडे छे?...
शुद्धात्मा देखाडे छे. शुद्धात्माने कई रीते
जाणवो?...पोताना स्वानुभवथी.
प३. क्रियाजड कोण छे?...
जे बाह्यक्रियामां (जडनी क्रियामां) धर्म
माने छे ते.
प४. शुष्कज्ञानी कोण छे?
जे मुखथी मात्र वातो करे छे पण मोह
छोडतो नथी ते.
पप. पोतानुं स्वरूप न समजवाथी शुं
थयुं?
जीव अनंत दुःख पाम्यो.
प६. धर्मोपदेश मळवा छतां जे न
सांभळे ते केवा छे?
आत्मानी दरकार वगरना.
प७. आ उपदेश कोने माटे छे?
संसारथी थाकीने आत्मानी शांति लेवा
चाहता होय एवा जिज्ञासुने माटे.
प८. मुनि केवा छे?
रत्नत्रयना धारक छे ने मोक्षना साधक
छे.
प९. दुःखथी छूटीने सुखी थवानुं क््यारे
बनी शके?
वस्तुमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवता होय त्यारे.
६०. दुःख मटे ने सुख थाय–तेमां
उत्पाद–व्यय–ध्रुवता कई रीते?
सुखनो उत्पाद, दुःखनो व्यय, ने आत्मा
सळंग रह्यो ते ध्रुवता.
६१. वीतरागीसंतोए केवी शिखामण
आपी छे?
वीतरागीसंतोए वीतरागतानी ज
शिखामण आपी छे.
६२. जीवने माटे ईष्टउपदेश–हितोपदेश
शुं छे?
भेदज्ञान करावीने दुःखथी छोडावे ने
सुखनो अनुभव करावे ते.
६३. जैनधर्मना चारे अनुयोगमां केवो
उपदेश छे?
चारे अनुयोग वीतरागविज्ञानना ज
पोषक छे.
६४. श्रीगुरु आत्महितनो उपदेश कोने
संभळावे छे?
जेनामां विचारशक्ति खीली छे ने
समजवानी जिज्ञासा छे तेने.
६प. संतोए जगत उपर कई रीते
उपकार कर्यो छे?
अहा! संतोए मोक्षमार्ग समजावीने
उपकार कर्यो छे.