: २० : आत्मधर्म : महा : २४९प
६६. जिनवाणी शेनो नाश करावे छे?
मिथ्यादर्शन–ज्ञान–चारित्रनो नाश
करावे छे.
६७. जिनवाणी शेनी प्राप्ति करावे छे?
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी प्राप्ति
करावे छे.
६८. दरेक जीवनो स्वभाव केवो छे?
ज्ञानरूप ने सुखरूप.
६९. छतां तेने सुख केम नथी?
स्वभावने भूल्यो छे तेथी.
७०. ए भूल क्यारे मटे?
स्वभावनी ओळखाण करे त्यारे.
७१. शरीर वगर आत्मा एकलो सुखी
रही शके?
हा; देहातीत सिद्धभगवंतो परम सुखी छे.
७२. शरीर छोडीने (मरीने) पण जीवो
सुखी थवा केम ईच्छे छे?
केमके आत्मामां देह वगर ज सुख छे.
७३. ते सुख क्यारे अनुभवमां आवे?
देहथी भिन्न आत्माने पोतामां देखतां
ज अतीन्द्रियसुख अनुभवाय छे.
७४. जीवने मोटो रोग कयो छे?
मिथ्यात्व, अर्थात् ‘आत्मभ्रांति सम
रोग नहीं.’
७प. ते रोग केम मटे?
गुरुउपदेश अनुसार वीतरागविज्ञाननुं
सेवन करवाथी.
७६. दुःखनी दवा शुं?
आत्माना सुखनो अनुभव–ए ज दुःख
मटाडवानी एकमात्र दवा छे; बीजी कोई
दवाथी दुःख मटतुं नथी.
७७. अत्यारसुधी जीवे शुं कर्युं?
मोहथी पोताने भूलीने संसारमां
भटक्यो...ने दुःखी थयो.
७८. जीव दुःखी केम छे? पोतानी
भूलथी.
७९. भूल शुं?...पोते पोताने भूल्यो ते.
८०. ते भूल केवडी?
ते भूल नानी नथी पण सौथी मोटी
भूल छे.
८१. भूल क्यारे भांगे? ने दुःख क्यारे
मटे?
आत्मानी साची समजण करतां भूल
भांगे ने दुःख मटे.
८२. दुःख मटाडवा माटे अज्ञानी केवा
उपाय करे छे?
अज्ञानीजीव बाह्यसामग्रीने दूर
करवाना के टकावी राखवाना उपाय करीने
दुःख मटाडवा ने सुखी थवा ईच्छे छे, पण
ए बधा उपाय जूठा छे.
८३. तो साचो उपाय शो छे?
सम्यग्दर्शनादि वडे मोह दूर थतां साचुं
सुख थाय छे.
८४. जीवनी बेवडी भूल कई छे?
एक तो पोते मोह करे छे, अने पाछो
ते बीजा उपर ढोळे छे.
८प. जीव केम रखड्यो?–पोतानी भूलथी.