: महा : २४९प आत्मधर्म : २१ :
८६. ए भूल केम टळे?
स्व–परनुं भेदज्ञान करे तो.
८७. जीव शेनाथी हेरान थाय छे?
पोताना अज्ञानथी.
८८. कर्मो जीवने हेरान करे छे?–ना.
८९. आत्मानी साची समजण क्यारे
करवी?
अत्यारे ज; साची समजण माटे आ
उत्तम अवसर आव्यो छे.
९०. मोहने लीधे जीव शुं करे छे?
पोतानुं भान भूलीने परद्रव्यने पोतानां
माने छे.
९१. अज्ञानथी जीव क्यां भटक्यो?
निगोदथी मांडीने नवमी ग्रैवेयक सुधीमां
बधे भटक्यो.
९२. सिद्धनुं सुख ने निगोदनुं दुःख, ए
बंने केवां छे?
बंने वचनातीत छे.
९३. दुःख सातमी नरकमां वधु के
निगोदमां?
निगोदमां.
९४. संसारमां जीवने दुर्लभ शुं छे? ने
अपूर्व शुं छे?
प्रथम तो निगोदमांथी नीकळी त्रसपणुं
पामवुं दुर्लभ, त्रसमां पंचेन्द्रियपणुं दुर्लभ,
तेमां संज्ञीपणुं दुर्लभ, तेमां मनुष्य थवुं
दुर्लभ; मनुष्यमां आर्यक्षेत्र–जैनकूळ–
पांचेईन्द्रियोनी पूर्णता–दीर्ध
आयु मळवा दुर्लभ, ने तेमां साचा देव–
गुरु मळवा दुर्लभ छे, आ बधुं दुर्लभ होवा
छतां पूर्वे मळी चूक्युं छे. त्यारपछी
आत्मानी रुचि करीने सम्यग्दर्शन प्रगट
करवुं ते दुर्लभ अने अपूर्व छे. पछी
मुनिदशारूप रत्नत्रयनी प्राप्ति तो तेनाथीये
दुर्लभ छे. तेनी अखंड आराधना करीने
केवळज्ञान पामवुं ते सौथी दुर्लभ ने अपूर्व
छे.
९प. संसारदशामां झाझो काळ शेमां
वीत्यो?
निगोदमां.
९६. निगोदमां घणुं दुःख केम छे?
केमके ते जीवोने प्रचूर भावकलंक छे,
घणो मोह छे.
९७. जीवे अनंत शरीरो धारण करवा
छतां ते शरीररूप थयो छे?
ना, शरीरथी जुदो उपयोगरूप ज रह्यो
छे.
९८. ईंडामां जीव छे?
ईंडामां पंचेन्द्रियजीव छे; तेनुं भक्षण ए
मांसाहार ज छे.
९९. जीवे शेनो उद्यम करवा जेवुं छे?
बोधि–रत्नत्रयनी दुर्लभता विचारीने
तेनो उद्यम करवा जेवुं छे.
१००. सिद्धदशा शेनाथी भरेली छे?
आत्माना आनंदथी भरेली छे.
(विशेष आवता अंके)