Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९प आत्मधर्म : २प :
तो ज्ञाननी जेम राग वगर आत्मा जीवी शके नहीं; पण सिद्धभगवंतो सदाय राग
वगर ज चैतन्यप्राणथी जीवे छे. माटे राग अने ज्ञान एक वस्तु नथी; तेथी रागनुं कार्य
ज्ञानमां नथी; ज्ञान रागनुं कर्ता नथी.
पोतानुं स्वरूप सूझ पडे तेवुं छे
अहो, आ तो भेदज्ञान करीने आत्मानो स्वभाव देखाडे छे. भाई, तारे
तारा आत्माने आ भवभ्रमणथी छोडाववा माटेनी रीत संतो तने समजावे छे.
तारा चैतन्यस्वरूपने भूलीने, परना कर्तृत्वनी मिथ्याबुद्धिथी तुं अनंतकाळ दुःखी
थयो, तेनाथी हवे छूटवा माटे आ तारा साचा स्वरूपनी वात छे. आ पोतानुं
स्वरूप छे–एटले सूझ न पडे एवुं नथी. अभ्यास न होय एटले अघरुं लागे पण
रुचिपूर्वक प्रयत्न करतां बधी सूझ पडे तेवुं छे. पोतानुं स्वरूप पोताने केम न
समजाय?
आत्मा केवो छे? अरिहंतोनो अपूर्व मार्ग!
तारो आत्मा केवो छे?–शांत–शीतल अकषायस्वरूप ज्ञाताद्रष्टा आत्मा छे.
शांतरसथी भरेलुं ज्ञान, ते कषायोनुं अकर्ता–अभोक्ता ज छे. आत्मानो
द्रव्यस्वभाव तो त्रिकाळ आवो छे ज, ने तेनुं भान थतां जे शुद्ध ज्ञानपर्याय
प्रगटीने आत्मा साथे अभेद थई ते पर्यायमां पण रागादिनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी.
रागनी शुभवृत्ति ऊठे तेनुं कर्ताभोक्तापणुं ज्ञानीना ज्ञानमां नथी, केमके ते
शुभवृत्ति साथे तेनुं ज्ञान एकमेक थतुं नथी पण जुदुं ज परिणमे छे, अरे, राग तो
ज्ञानथी विरुद्ध भाव छे, रागमां तो आकुळतारूप अग्नि छे, ते ज्ञान तो शांतरसमां
तरबोळ छे; ज्ञानथी विरुद्ध एवा रागवडे मोक्षमार्ग थवानुं मानवुं ते तो दुश्मन वडे
लाभ मानवा जेवुं छे. भाई, रागमां ज्ञान कदी तन्मय थतुं नथी, तो ते ज्ञान
रागनुं साधन केम थाय? ने रागने ते पोतानुं साधन केम बनावे? अहो,
अरिहंतोनो अपूर्व मार्ग छे, तेमां रागनी अपेक्षा ज क्यां छे? एकला
अंतरस्वभावनो मार्ग...बीजा बधायथी निरपेक्ष छे.
संधूकण (बळतण) जेम अग्निने करे छे तेम आंख कांई तेने