नथी. अहीं बहारनी आंखनुं द्रष्टांत आपीने अंतरनो ज्ञानस्वभाव समजाववो छे;
सिद्धान्त समजी ल्ये तेने माटे द्रष्टांत कहेवाय, पण दाखलाने ज पकडीने अटकी जाय
तो एकला दाखलाथी कांई पार पडे तेवुं नथी; अंदरनी वस्तुने लक्षमां ल्ये त्यारे ज
साचो ख्याल आवे. आम तो जगतमां कोई द्रव्य बीजा द्रव्यनी क्रिया करतुं नथी,
पण अहीं तो अत्यारे आत्माना ज्ञायकस्वभावनी वात समजाववी छे. जेम आंख
बहारना पदार्थोथी दूर रहीने देखे छे पण तेने करती नथी; तेम आत्माना
ज्ञानस्वभावथी राग दूर छे–भिन्न छे–अन्य छे. ते रागने के–शरीरादि क्रियाने करे
एवुं आत्माना ज्ञानमां नथी. अज्ञानमां रागादिनुं कर्तृत्व छे, पण परनुं कर्तृत्व तो
अज्ञानमांय नथी. अज्ञानी मिथ्याबुद्धिथी (शकटनो भार जेम श्वान खेंचे–तेम)
परनुं कर्तृत्व माने छे. पण बापु! आंखनी जेम ज्ञान जगतने जाणे खरुं पण
जगतनां कामने करे नहि; आंखथी अग्नि सळगावाय नहि तेम आत्माथी जगतनां
काम थाय नहि.
थवा जाय–एटले के तेनो कर्ता थवानुं माने तो ते मिथ्यात्वरूप भ्रमणाथी ते पोते दुःखी
थाय छे. अज्ञानी पोतामां भ्रमणा भले करे छतां परनां काम करी तो शक्तो नथी. अरे,
तुं ज्ञान! ज्ञानमां तो जडनां के रागनां काम केम होय? अहीं तो हजी जीवमां पण एना
पांच भावोनुं सूक्ष्म स्वरूप समजावशे, ने तेमांथी मोक्षनुं कारण कयो भाव छे ते
बतावशे.
जईश. तारा सत्मां तो ज्ञान–आनंद भर्या छे, जाणवारूप ज्ञानभावमां तारी सत्ता छे.
अनंत गुणोथी अभेद