Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 32 of 47

background image
: महा : २४९प आत्मधर्म : २९ :
अहो, पोतानुं ज्ञानचक्षु केवुं छे एनी पण जीवने खबर नथी. भाई, परवस्तु तो
तारा ज्ञानथी बहार छे, एने कांई ज्ञान न मेळवे. जेम आंख कांई बहारना पदार्थोने
देखतां तेमने पोतामां घूसाडी देती नथी, तेम बहारना ज्ञेय पदार्थोने जाणनारुं ज्ञान
कांई ते पदार्थोने पोतामां घूसाडी देतुं नथी. पदार्थो ज्ञानमां प्रवेशता नथी, ज्ञानथी
बहार जुदा ज रहे छे. ज्ञानना अनुभवमां तो आनंद वगेरे पोताना अनंत गुणनो रस
समाय छे. पण परद्रव्यो के राग तेमां समाता नथी. भगवान आत्मानुं आवुं
ज्ञानस्वरूप आ गाथामां समजाव्युं छे.
जेम आंख छे तो शरीरनी शोभा छे, तेम भगवान आत्मानी शोभा चैतन्य–
आंख वडे छे; चैतन्यचक्षु ते ज आत्मानी आंख छे. ते आंख वडे आत्मा कदी रागादिने
करतो–भोगवतो नथी. कर्मने बांधवा–छोडवानो तेनो स्वभाव नथी. आवी शुद्ध
ज्ञानपर्यायरूपे परिणमेलो सम्यग्द्रष्टि आत्मा (भले चोथा गुणस्थाने होय तोपण)
रागादिनो के देह–मन–वाणीनी कोई क्रियानो कर्ता नथी. आत्मा तो पोतानी ज्ञानचेतना
साथे अभेद थईने परिणम्यो त्यां कर्मचेतनानुं कर्तृत्व क्यां रहे? सम्यग्द्रष्टि
ज्ञानचेतनारूपे ज परिणमे छे. रागादिने जाणे भले, पण ते रूपे थईने–तन्मय थईने
परिणमता नथी. अने तन्मय थता नथी माटे तेना कर्ता–भोक्ता नथी. आवी
ज्ञानचेतनारूप चक्षु वडे जीव शोभे छे.
(‘ज्ञानचक्षु’ पुस्तकमांथी
एक प्रकरण: पुस्तक छपाय छे.)
सिनेमा जोनारने...
अरे भाई! चैतन्यभगवानने जोवानो अवसर
मुकीने तुं फिलम जोवामां क्यां वळग्यो? एमां तो पापनां
नाच–नखरां छे; ने आ चैतन्यनी निर्मळ पर्यायनुं नाटक
(परिणमन) तो कोई अलौकिक शांति ने आनंद देनारुं
छे. लौकिक फिलम ए तो पैसा आपीने पाप लेवाजेवुं छे.
तारा आत्मामां अंदर अनंत गुणनुं सीनेमा (द्रश्य) केवुं
छे ते तो जो. भगवान आत्माने टग टग जोवानो आ
अवसर छे.
(प्रवचनमांथी)