Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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पं. बुधजनरचित छहढाळा –प्रथम ढाल–
(सोरठा)
सर्व द्रव्यमें सार आतमको हितकार है,
नमों ताहि चित्तधार नित्य निरंजन जानके.
(पं. बुधजनजीए आ पहेली ढाळमां १२ गाथा द्वारा बार भावना वर्णवी छे,
ने पं. दौलतरामजीए बारभावनानुं वर्णन पांचमी ढाळमां कर्युं छे, दौलतरामजीए
पहेली ढाळमां जे संसारदुःखवर्णन कर्युं छे ते वर्णन बुधजनजीनी बीजी ढाळमां छे.)
(चौपाई)
आयु घटे तेरी दिनरात, हो निश्चिन्त रहो क्यों भ्रात
यौवन–तन–धन–किंकर–नारि, हैं सब जलबुदबुद उनहारि।। ।।
पूरे आयु बढे क्षण नाहिं, दियें कोटि धन तीरथ माहिं
ईन्द्र–चक्रपति भी क्या करें, आयु अन्तपर ते भी मरें।। ।।
यों संसार असार महान, सार आपमें आपा जान
सुखसे दुःख दुःखसे सुख होय, समता चारों गति नहि कोय।। ।।
अनंतकाल गतिगति दुःख लह्यो, बाकी काल अनंता कहो
सदा अकेला चेतन एक, तोमांही गुण बसत अनेक।। ।।
तू न किसीका तेरा न कोई, तेरा दुःख–सुख तोको होई
यासे तुझको तू उर धार, परद्रव्योंसे मोह निवार।। ।।
हाड–मांस–तन लपटा चाम, रुधिर मूत्र–मल पूरित धाम
सोभी थिर न रहे क्षय होई, याको तजे मिले शिव लोई।। ।।
हित–अनहित तनकुलजनमाहिं, खोटी बानि हरो क्यों नाहिं
यासे पुदगलकर्म नियोग, प्रणमे दायक सुख दुःख रोग।। ।।
पांचो ईन्द्रिनका तज फैल, चित्तनिरोध लाग शिवगैल
तुझमें तेरी तू कर सैल, रहो कहा हो कोल्हूबेल।। ।।
तज कषाय मनकी चल चाल, ध्यावो अपना रूप रसाल
झंडे कर्मबंधन दुःखदान, बहुरि प्रकाशे केवलज्ञान।। ।।
तेरा जन्म हुआ नहीं जहां, ऐसा कोई क्षेत्र सो कहां
याही जन्मभूमि का रचो, चलो निकल तो विधिसे बचो।। १०।।
सब व्यवहारक्रियाका ज्ञान, भयो अनंत वार प्रधान
निपट कठिन अपनी पहिचान, ताको पावत होय कल्याण।। ११।।
धर्म स्वभाव आप श्रद्धान, धर्म न शील न न्हौन न दान
बुधजन गुरुकी शीख विचार, ग्रहो धर्म आपन निर्धार।। १२।।