Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 47

background image
: महा : २४९प आत्मधर्म : ३ :

आत्मानो अनुभव करवा माटे जेने लगनी लागी छे एवा शिष्यने संबोधीने
३४ मा कळशमां आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य! विरम...जगतना बीजा कोलाहलथी तुं
विरक्त था. बहारना कलबलथी तने कांई लाभ नथी माटे एनाथी तुं विरक्त
था...बाह्य कोलाहलने एककोर राखीने अंतरमां चैतन्यने देखवानो अभ्यास कर.
समस्त परभावोना कोलाहलथी रहित एवा चैतन्यस्वरूपने देखवा माटे निभृत था.
निभृत थईने एटले के शांत थईने, निश्चळ थईने, एकाग्र थईने, विश्वासु थईने, स्थिर
थईने, गुप्त रीते, चुपचाप, विनीत थईने, केळवायेल थईने, द्रढ थईने अंतरमां
चैतन्यने देखवाना अभ्यासमां तारुं चित्त बराबर जोड. एकवार छ महिना सुधी आवो
अभ्यास करीने तुं खातरी करी जो...के आम करवाथी तारा हृदयसरोवरमां पुद्गलथी
भिन्न एवा चैतन्यप्रकाशनी प्राप्ति थाय छे के नहीं? छ महिनामां तो जरूर प्राप्ति थशे.
हे भाई! तारी बुद्धिथी देह अने रागादिने पोताना मानीने तेनो तो तें
अनंतकाळथी अभ्यास कर्यो, छतां चैतन्यविद्या तने प्राप्त न थई, तने तारो आत्मा
अनुभवमां न आव्यो, ने तुं अज्ञानी ज रह्यो...माटे हवे तारी ए मिथ्याबुद्धिने
छोडीने अमे कहीए छीए ते रीते तुं अभ्यास कर. एवा अभ्यासथी छ महिनामां
तो तने जरूर चैतन्यविद्या प्राप्त थशे...छ महिना सुधी लगनीपूर्वक अभ्यास करतां
तने जरूर आत्मानो अनुभव थशे. भाई, छ महिना तो अमे वधुमां वधु कहीए
छीए, जो उत्कृष्ट आत्मलगनी पूर्वक तुं प्रयत्न कर तो तो बेघडीमां ज तने
आत्मानो अनुभव थशे.
अहा, जुओ तो खरा....आ चैतन्यना अनुभवनो मार्ग! केटलो सरल अने
सहज! चैतन्यनो अनुभव सहज अने सरल होवा छतां, दुनियाना नकामा कोलाहलमां
जीव रोकाई गयो होवाथी तेने ते दुर्लभ थई पड्यो छे. तेथी आचार्यदेव खास शरत मूके
छे के दुनियानो नकामो कोलाहल छोडीने चैतन्यना अनुभवनो अभ्यास कर...एक
चैतन्यतत्त्व सिवाय बीजुं बधुं भूली जा...आ रीते, मात्र चैतन्यनो