: महा : २४९प आत्मधर्म : प :
: संसार अनुप्रेक्षा:
संसार
मिथ्यात्व अने कषाय सहित जीव एक शरीर छोडीने बीजुं शरीर ग्रहण करे छे,
फरी फरीने ते शरीर छोडीने नवुं–नवुं शरीर धारण करे छे ने पाछो छोडे छे.–आ प्रमाणे
मिथ्यात्व अने कषाययुक्त जीवने वारंवार अनेक शरीरोमां जे संसरण थाय छे तेने
संसार कहेवाय छे. (अथवा परभावमां परिणमवुं ने स्वभावमांथी सरी जवुं–तेनुं नाम
संसार छे.)
नरकनां दुःख
जीव पापना उदयथी नरकमां ऊपजे छे, त्यां ते पांच प्रकारनां दुःखो सहे छे,
तेमज उपमारहित बीजा अनेक दुःखो सहन करे छे. (१) असुरदेवोथी उपजावेलां दुःख,
(२) शारीरिक तथा (३) मानसिक अनेक दुःख (४) क्षेत्रथी उत्पन्न दुःख तथा (प)
अन्योन्यकृत दुःख–एम पांच प्रकारे तीव्रदुःख नरकमां छे. त्यां शरीरने छेदी–भेदीने
तलतल जेवडा टूकडा करे छे, वजा्रग्निमां ऊकाळे छे ने रूधिरना कुंडमां फेंके छे. एम अनेक
प्रकारे जे दुःखो नरकमां एकसमयमां जीव सहन करे छे ते बधानुं वर्णन हजारो जीभवडे
पण थई शक्तुं नथी. नरकनुं क्षेत्र स्वभावथी ज सर्व प्रकारे दुःखदायक अने अशुभ छे;
तथा नारकी जीवो एकबीजा प्रत्ये सदाय कुपित (क्रोधवाळा) रहे छे. अन्य भवमां जे
स्वजन होय ते पण नरकमां अत्यंत कोपित थईने हणे छे. ए प्रमाणे नारकी जीव तीव्र
विपाकवाळां दुःखो घणा काळ सुधी भोगवे छे.
तिर्यंचनां दुःख
ते नरकमांथी नीकळीने जीव अनेक प्रकारनी तिर्यंचगतिमां ऊपजे छे, त्यां पण
गर्भनां तथा छेदनादिकनां दुःख पामे छे; सिंह वगेरे तिर्यंचोवडे ते खवाय छे, दुष्ट
मनुष्यो वडे हणाय छे,–एम सर्वत्र भयथी त्रासीने भयंकर दुःखो सहन करे छे. एक
बीजावडे भक्ष्य थता ते तिर्यंचो दारूण दुःख पामे छे.–अरे, ज्यां माता ज पुत्रने खाई
जाय छे त्यां बीजुं कोण रक्षा करे? त्यां उदराग्निथी भळभळतो ते जीव तीव्र तरसथी
तरस्यो अने तीव्र भूखथी भूख्यो थईने तीव्र दुःख पामे छे. ए प्रमाणे तिर्यंचयोनिमां
बहु प्रकारनां दुःखो सहन करे छे.
मनुष्यनां दुःख
तिर्यंचमांथी मांडमांड नीकळीने अपूर्ण–