Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : महा : २४९प
लब्धिवाळो (लब्धि–अपर्याप्त) मनुष्य थाय छे. गर्भमां ऊपजे तो त्यां पण अंग–
प्रत्यंगना अत्यंत संकोचथी तीव्र दुःख पामे छे, तथा जन्म वखते योनिमांथी नीकळतां
महा दुःख पामे छे. बाळपणमां ज माता–पिताथी रहित थवाथी दुःखित थईने पारकी
एठ खाईने ऊछरे छे, तथा याचक–भीखारी थईने महा दुःखमां काळ वीतावे छे. आ
प्रमाणे पापने लीधे अशुभकर्मने वश सर्व जीवो दुःख भोगवे छे,–छतां फरीने पण ते
पाप ज करे छे, कंई पण पुण्य उपार्जन करता नथी. सम्यग्द्रष्टि, व्रतसंयुक्त,
उपशमभावसहित तथा निंदा–गर्हणासंयुक्त–एवा विरला जीवो ज पुण्योपार्जन करे छे.
पुण्यवंत जीवने पण ईष्टवियोग अने अनिष्टसंयोग थतो देखाय छे.–जुओ,
अभिमानयुक्त भरतचक्रवर्ती जेवा पण पोताना नाना भाईवडे पराजित थई गया.
आ संसारमां बहुपुण्यवंतने पण समस्त ईष्ट विषयोनो योग सर्वांगपणे मळतो
नथी; ने एवुं कोई पुण्य पण नथी के जेना वडे बधुं ज मनोवांछित मळे.
कोईने तो स्त्री नथी; जो स्त्री छे तो पुत्र प्राप्ति नथी, अने पुत्र होय तो वळी
शरीर रोगी होय छे. कदाचिन् नीरोग शरीर होय तो धन–धान्य होतां नथी; ने धन–
धान्य पण होय तो जल्दी मृत्यु आवी पडे छे. वळी कोईनी स्त्री दुष्ट होय छे, कोईनो
पुत्र दुराचारी–व्यसनी होय छे; कोईना बांधवो ज शत्रु जेवा छे, अने कोईनी पुत्री
दुराचारिणी होय छे; कोईनो सुपुत्र मरी जाय छे, कोईनी वहाली स्त्री मरी जाय छे,
कोईना घर–कुटुंब अग्निमां भस्म थई जाय छे. (संसारमां आम अनेकविध
ईष्टवियोग ने अनीष्टसंयोग थया करे छे.) अरे, मनुष्यगतिमां आवां अनेक दुःखो
सहेवा छतां पण जीव धर्ममां बुद्धि केम जोडतो नथी? ने आरंभने केम छोडतो नथी!
संसारमां पुण्य–पापनुं चक्र सदाय फर्या करे छे; तेथी कर्मविपाकअनुसार क्यारेक
धनवान तो निर्धन बनी जाय छे ने निर्धन पण धनवान थई जाय छे; राजा मटीने
सेवक बनी जाय छे, ने सेवक पण राजा थई जाय छे. शत्रु होय ते मित्र बनी जाय छे ने
मित्र पण शत्रु बनी जाय छे.–संसारनो तो आवो ज स्वभाव छे.
देवगतिनां दुःख
हवे कदाचित देव थाय तो तेने पण, बीजा महान ऋद्धिधारक देवोनो वैभव
देखीने बळतराथी मानसिक दुःख थाय छे. महर्द्धिकदेवोने पण ईष्टवियोग थतां
विषयतृष्णावश दुःख थाय छे. जेमनुं सुख विषयोने आधीन छे (पराधीन छे) एवा
जीवने तृप्ति क्यांथी होय? (एटले पुण्यजनित ईन्द्रियसुखोथी जीव खरेखर सुखी थतो
नथी.) शारीरिक दुःखोथी पण मानसिक दुःखो अत्यंत तीव्र होय छे; मानसिकदुःखवाळा
जीवने विषयो पण दुःखकर थई पडे छे. बाह्यसामग्रीओ विद्यमान होय तोपण मानसिक
चिंतावाळो जीव दुःखी ज रहे छे. मनोहर विषयोवडे