: फागण : २४९प आत्मधर्म : ९ :
जाणे दुःखना दरियामां ओछामां ओछा दशहजारवर्षथी
पड्यो होय–तेवुं. मांडीने असंख्यवर्षो सुधी.
१प१. नरकनी जमीननो स्पर्श केवो छे? १६०. सिद्धपदना सुखमां जीव केटलो काळ रहे?
हजारो वींछीनाडंख जेवो. संसार करतां अनंतगुणा काळसुधी,
१प२. नरकमां दुर्गंध केवी छे? सादिअनंत सदाय.
जेनाथी केटलाय गाउना माणसो १६१. चारगतिनां दुःख कोने भोगववा
मरी जाय–एवी. पडे छे?
१प३. नरकमां वींछी वगेरे होय छे? जे आत्मानुं ज्ञान न करे तेने.
ना, त्यां विकलेन्द्रियजीवो १६२. नरकनी अनंती वेदना छतां
होता नथी. जीव केम मरी न गयो?
१प४. चारगतिनां दुःखोनुं वर्णन शा जीवनुं जीवत्व के अस्तित्व कदी
माटे कर्युं छे? हणाय नहि; अरे! नरकनी वेदना
मिथ्यात्वादिने लीधे आवा दुःखो वच्चे पण असंख्यजीवो अंतरमां
छे–एम जाणीने तेनुं सेवन ऊतरीने सम्यग्दर्शन पामी गया छे.
छोड; ने सुखनुं कारण १६३. दुःखमय संसारमां क्यांय न
सम्यक्त्वादि छे–तेनुं सेवन कर. गमे तो शुं करवुं?
१पप. अत्यारसुधीनो अनंतकाळ जीवे ‘जीव! तने क्यांय न गमे
शेमां गाळ्यो? तो आत्मामां गमाड’
संसारनी चारगतिमां दुःख १६४. नरकनुं आयु कोने बंधाय?
भोगववामां. मिथ्याद्रष्टिने ज बंधाय;
१प६. स्वर्ग अने नरक शुं छे? सम्यग्द्रष्टिने न बंधाय. वीतरागी
जीवोने पुण्य अने पापनां फळ देवगुरुधर्मनी निंदा करनारा, ने
भोगववाना स्थानो छे. तीव्र पापो करनारा जीवो
१प७. तीव्र हिंसा, मांसभक्षण नरकमां जाय छे.
वगेरे महापाप १६प. कोईक सम्यग्द्रष्टि पण नरकमां
करनारा जीवो क्यां जाय छे? तो जाय छे?
नरकमां. तेणे पूर्वे मिथ्यात्वदशामां नरकआयु
१प८. नरकमां जीव केटलुं दुःख पामे छे? बांध्युं हतुं–तेथी.
पूर्वे जेटली पापरूपी किंमत
भरी होय तेटलुं.
१प९. नरकमां जनार जीव त्यां
केटलो वखत दुःख भोगवे?