: १० : आत्मधर्म : फागण : २४९प
१६६. नरकना जीवने क्यारेय साता थाय? अंतर्मुहूर्त, नरकमांथी नीकळेलो
हा; मध्यलोकमां तीर्थंकरनो जन्म कोई जीव मात्र अंतर्मुहूर्तमां तीव्र
वगेरे प्रसंगे नरकना जीवोनेय पाप करीने फरी पाछो नरकमां जाय.
साता थाय छे, ने ते प्रसंगे कोई १७प. नरकना जीवो केटली ईन्द्रियवाळा छे?
कोई जीवो तो सम्यक्त्व पण ते जीवो पंचेन्द्रिय–संज्ञी छे.
पामी ल्ये छे. १७६. नारकीने खंडखंड थई जाय
१६७. ठंडीथी आग लागे? तेवुं शरीर केम मळ्युं?
हा; हिमनी जेम शांत– अकषायभाव अखंड आत्मानी एकताने पापथी
वडे कर्मोमां आग लागी जाय छे. खंडखंड करी नांखी छे तेथी.
१६८. क्या भावथी कर्मोनो नाश थाय?... १७७. जीवने केटलुं सुख? केटलुं दुःख?
वीतरागभावथी. जेटली स्वभावपरिणति तेटलुं सुख
१६९. नारकीमां स्त्रीवेद के पुरुषवेद होय? जेटलो विभाव तेटलुं दुःख.
ना; त्यां बधा नपुंसक होय छे. १७८. आहार–पाणी वगर आत्मा जीवी शके?
१७०. देवलोकमां क्या वेद होय? हा.
त्यां स्त्री के पुरुषवेद ज १७९. जीवने परवस्तु वगर चाली शके?
होय. नपुंसक वेद न होय. हा; परवस्तु वगर ज जीव पोतानी
१७१. नरकमां खावा–पीवानुं मळे? अस्तिथी जीवी रह्यो छे.
ना; त्यां कदी पाणीनुं टीपुं के १८०. नरकमां जीवने कोणे दुःखी क््र्यो?
अनाजनो दाणो मळतो नथी. कोई बीजाए दुःखी नथी कर्यो;
१७२. छतां एवी नरकमां पोताना मोहथी ज दुःखी छे.
सम्यग्दर्शन थाय? हा भाई, त्यां १८१. नरकना जीवने शुभभाव थई शके?
पण आत्मा छे ने? एटले हा, अने आत्मज्ञान पण थई शके.
सम्यग्दर्शन पामीने दुःखना १८२. नरकमांथी नीकळीने जीव क्यां जाय?
दरियानी वच्चे पण शांतिनुं कां तो मनुष्य थाय, कां
मधूरुं झरणुं प्राप्त करी ल्ये छे. तिर्यंचमां जाय.
१७३. जीवने दुःखना दरियामांथी १८३. जीवे चारगतिमां सौथी ओछा
उगारनार कोण छे? भव शेना कर्या?
एकमात्र वीतरागीधर्म, मनुष्यना.
बीजुं कोई नहि.
१७४. नरकना बे भव वच्चे
आंतरुं ओछामां ओछुं केटलुं?