: फागण : २४९प आत्मधर्म : ११ :
१८४. जीव बहारथी पोतानी १९२. कोने सुखरसनी गटागटी छे?
मोटाई केम माने छे?
ते पोताना स्वभावनी सम्यग्द्रष्टि जीवोने.
महानताने नथी जाणतो तेथी. १९३. मिथ्याद्रष्टिजीवस्वर्गमां जाय
१८प. जीवनी मोटाई शेनाथी छे? तो सुखी थाय?
ज्ञानस्वभाव वडे जीवनी ना; ते देवलोकमां पण दुःखी ज छे.
अधिकता ने महानता छे. १९४. स्वर्गमां पण जीव केम सुखी
१८६. जीवने शुं नथी शोभतुं? न थयो?
अज्ञान अने दुःखनुं वेदन आत्मज्ञान न होवाथी.
जीवने नथी शोभतुं. १९प. चंद्र–सूर्य देखाय छे ते शुं छे?
१८७. अत्यारे भरतक्षेत्रमां आत्मज्ञानी ते ज्योतिषी देवोनां विमानो
जीवो अवतरे खरा? छे, देवो तेमां रहे छे.
ना, पण अवतर्या १९६. केवा जीवो चंद्रलोकमां ऊपजे?
पछी आत्मज्ञान पामी शके. त्यां अज्ञानी ऊपजे, ज्ञानी नहीं.
१८८. मनुष्यभवनी सार्थकता क्यारे? १९७. देवोने शेनुं दुःख?
आत्मस्वरूप ओळखीने विषयोनी अभिलाषानुं.
वीतरागविज्ञान प्रगट करे त्यारे. १९८. स्वर्गमां कोई सुखी होय?
१८९. मोंघुं मनुष्यपणुं ते अपूर्व छे? हा; त्यां जे देवो सम्यग्द्रष्टि छे
ना; सम्यग्दर्शन प्रगट तेओ सुखी छे.
करवुं ते अपूर्व छे. १९९. संतोनो आ उपदेश जाणीने शुं करवुं?
१९०. मनुष्यने बुद्धि मळी–ते मिथ्यात्वादिनुं सेवन
शेमां वापरवी? तुरत ज छोडवुं ने सम्यक्त्वादिने
आत्माना हितनो विचार
करवामां. परमसुखनुं कारण जाणीने
१९१. जीव नकामो काळ शेमां गुमावे छे? तेनी आराधनामां आत्माने जोडवो.
पार वगरनी पारकी चिन्तामां २००. एम करवाथी शुं मंगळफळ आवे?
व्यर्थ काळ गुमावे छे. वीतरागविज्ञान प्रगटीने मोक्ष थाय.
तीनभुवनमें सार, वितरागविज्ञानता।
शिवस्वरुप शिवकार, नमुं त्रियोग सम्हारिके।।