: १६ : आत्मधर्म : फागण : २४९प
प्रसंगो तो नजरे देखाय छे. पछी वृद्धावस्थानो शो भरोसो? अत्यारे युवानअवस्था
वखते तुं एम कहे छे के वृद्धावस्थामां करीशुं; पण वृद्धावस्थामां ज्यारे शक्तिओ क्षीण थई
जशे त्यारे तने पस्तावो थशे के अरे, युवानीमां वखत हतो त्यारे आत्मानी कांई दरकार
न करी. माटे वायदा करवानुं मूकीने अत्यारथी ज आत्मानुं हित थाय–एवो उद्यम कर.
बहारना संयोगनी सगवडतामां तने पोतानी सरखाई लागे छे,–पण भाई!
ए बहारना संयोगमां तुं छो ज क्यां? तारुं रूप तो तेनाथी जुदुं छे. तुं तो ज्ञानरूप
छो; तारा साचा रूपने तुं ओळख. ‘हुं कोण छुं? क्यांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारुं
खरुं?’–एनो शांतिथी विचार कर.
रे जीव! एकेन्द्रियथी असंज्ञी पंचेन्द्रिय सुधी तो तेने विचार करवानी शक्ति ज
न हती, अत्यारे विचार करवानी शक्ति ऊघडी छे तो आत्माना हितनो विचार करीने
तेनो सदुपयोग कर. घणा जीवो तो मनुष्य थवा छतां एटली बधी मंदबुद्धिवाळा होय
छे के मूढ जेवा ज रहे छे; कोईने थोडीघणी बुद्धि होय छे तो बहारना कार्योनां तीव्र
अभिमान आडे बुद्धिने तेमां ज रोके छे, आत्माना हित माटे बुद्धिनो उपयोग नथी
करतो. पैसा केम कमावा तेमां बुद्धि वापरे छे (–जो के पैसा तो पुण्यअनुसार मळे छे)
–पण आत्माना हितनी कमाणी केम थाय तेमां बुद्धि वापरता नथी. आत्माना हितनो
विचार कर्या वगर मोंघुं जीवन वेडफी नांखे छे. अरे, आवुं मोंघुं जीवन, ते मात्र
धनमां–स्त्रीमां के राजपाटमां वेडफी नांखवानुं न होय; तेमां तो आत्माना हितनो एवो
विचार करुं के जेथी फरीने आ संसारमां आवा दुःखो भोगववा न पडे,–एम विचारीने
तारा आत्माने मोक्षपंथमां जोड. तारा चैतन्यप्रभुने तें कदी न देख्यो. तो हवे अत्यारे
तेने देख. चैतन्यना दर्शननो (सम्यग्दर्शननो) आ अवसर छे.–
मुमुक्षु पोताना चैतन्यप्रभुना दर्शननी तीव्र भावना भावे छे के अरे,
एकेन्द्रियथी असंज्ञी पंचेन्द्रिय सुधीमां में कदी मारा चैतन्यप्रभुने न देख्या...केमके ते
वखते तो देखवानी शक्ति ज न हती. पण हवे आ मनुष्यपणामां चैतन्यप्रभुने
देखवानो अवसर आव्यो छे, माटे हे चेतनासखी! मने मारा चैतन्यप्रभुनां दर्शन
कराव. ‘देखण दे...सखी, देखण दे.’
पोते पोताना चैतन्यप्रभुने देखवानी दरकार ज जीव क्यां करे छे! नवरो होय,
कांई काम न होय तोपण कांई धर्मना वांचन–विचारने बदले मफतनो पारकी चिन्ता
कर्या करे; धननी चिन्ता, शरीरनी चिन्ता, स्त्री–पुत्रनी चिन्ता, देशनी चिन्ता–एम पार
वगरनी पारकी चिन्तामां जीव व्यर्थ काळ गुमावे छे, पण आत्माना हितनी