: फागण : २४९प आत्मधर्म : १९ :
शुभराग साधक थईने ज्ञानने साधे एम बनी शकतुं नथी, केमके बंनेनी जात
जुदी छे.
माटे हे जीव! शुद्ध साध्यनी जातनो साधक भाव प्रगट करीने तुं तारा आत्माने
साध, स्वभावथी भिन्न बीजा साधनने न शोध.
* * *
दिल्हीना एक मुमुक्षुभाईना प्रश्नोना उत्तर:
* ध्यानच्युत अवस्थामां पण धर्मीने जेटली शुद्धी अने वीतरागता छे तेटलुं ज
सुख अने धर्म छे. जेटलो राग छे तेटलुं बंधन अने दुःख छे. –आ जैन सिद्धांतनो
नियम छे.
मुनिराजने उपदेश–विहार–आहारादि क्रिया थती वखते पण वच्चे वच्चे
वारंवार ध्यानदशा (सातमुं गुणस्थान) थया करे छे. मुनिनी अंतरदशानुं अनुमान
आ उपरथी थई शकशे के–तेमने २४ कलाकमांथी त्रीजोभाग (आठ कलाक) तो
नियमथी निर्विकल्पध्यानमां ज वीते छे. केवी महान छे मुनिदशा!–ए तो जाणे नानकडा
केवळी! (षट्खंडागम मां आ वात प्रसिद्ध छे.)
* जीवने मोहरहित जे उदय होय छे ते बंधनुं कारण जरापण थतो नथी, तेनी
निर्जरा ज थई जाय छे. माटे बंधनुं कारण उदय नथी पण बंधनुं कारण मोह छे.
प्रश्न:– आ काळ हलको छे माटे उत्कृष्ट अध्यात्मना उपदेशनी मुख्यता करवी
योग्य नथी.
उत्तर:– आ काळ साक्षात् मोक्ष थवानी अपेक्षाए हलको छे (अर्थात् साक्षात्
मोक्ष आ काळे अहींना जीवोने भले नथी) पण आत्मअनुभवनादि वडे सम्यक्त्वादि
होवानी आ काळमां मना नथी,–ते तो आ काळे पण थई शके छे. माटे
आत्मानुभवनादि अर्थे द्रव्यानुयोगनो अभ्यास अवश्य करवो.
सूर्य अने वादळा
मध्याह्नना पूर्ण तेजे सूर्य प्रकाशतो होय, त्यां नीचेथी अनेक वादळांओ
अवरजवर करता होय. नीचेथी जोनारने एम लागे के वादळा सूर्यने ढांके छे! पण नहि
वादळाथी ऊंचे सूर्य तो एवो ने एवो प्रकाशी रह्यो छे. वादळा आवे ने जाय तेथी कांई
सूर्यनो प्रकाश स्वभाव ढंकाई जतो नथी.