Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : फागण : २४९प
* वीतरागभावनुं प्रतिबिंब–जिनप्रतिमां *
* धर्मीने व्यवहारना स्थानमां
व्यवहार अने निमित्ति होय छे *

प्रश्न:– जो रागनुं अवलंबन नथी तो पछी जिनप्रतिमानुं अवलंबन शा माटे?
उत्तर:– जेने आत्माना वीतरागभावनो प्रेम होय, पण हजी राग होय तेने शुभराग
वखते वीतरागताना निमित्तो प्रत्ये लक्ष जाय छे; जिनप्रतिमा ए वीतरागभावनुं प्रतिबिंब
छे. आवी प्रतिमानुं अवलंबन शुभराग वखते होय, शुद्धतामां तो पोताना स्वभावनुं ज
अवलंबन छे, तेमां कांई परनुं अवलंबन नथी. जिनप्रतिमाजीना दर्शनपूजनना शुभरागने
मोक्षमार्ग मानी ल्ये तो ते भूल छे; अने धर्मीने एवो शुभराग होय ज नहि एम माने तो
ते पण भूल छे. जे भूमिकामां जेम होय तेम ओळखवुं जोईए. कई भूमिकामां केटली शुद्धता
होय, केटलो राग होय ने ते रागमां केवां निमित्तो होय एनो विवेक धर्मीने होय छे, मुनिदशा
जेटली शुद्धता प्रगटी होय ने शरीर उपर वस्त्र ओढीने फरवानो राग होय–एम बनी शके
नहि. वस्त्रना रागसहित मुनिदशा माने तेने मुनिदशानी शुद्धतानी खबर नथी. छठ्ठा–सातमा
गुणस्थाने मुनिने वस्त्रनो राग न होय छतां त्यां वस्त्र होवानुं माने छे, अने चोथा–पांचमा
गुणस्थाने जिनपूजा वगेरे राग होय छे छतां त्यां तेना निमित्तरूप जिनप्रतिमा वगेरेनो
निषेध करे छे,–ए प्रमाणे अज्ञानीने धर्मनी भूमिकानुं भान नथी, ने कई भूमिकामां केवा
निमित्त होय तेनी पण तेने खब२ नथी. जिनप्रतिमानो स्वीकार कर्यो तेथी कांई तेना
अवलंबने मोक्षमार्ग थई जाय छे एम नथी. राग वगरना आत्मस्वभावनुं भान होवा
छतां साधकभूमिकामां राग बाकी होय, त्यां जेम परमात्माना गुणोनुं स्तवन ते शुभराग छे
छतां ते भाव आवे छे, तेवी ज रीते भगवाननी मूर्तिनुं अवलंबन ते पण शुभराग छे छतां
ते भाव आवे छे. ते ज वखते निजपरमात्माना अवलंबने जेटली शुद्धता प्रगटी छे तेटलो ज
मोक्षमार्ग छे. जेम गुरुनी सेवा, धर्मनुं श्रवण वगेरे शुभभाव छे तेम जिनदेवना दर्शन–
पूजन ते पण शुभभाव छे. शुभने शुभ तरीके जाणवुं जोईए, ने शुद्धतानी धारा तेनाथी
जुदी छे–तेने ओळखवी जोईए.
आ तो सर्वज्ञ–वीतरागनो अलौकिक मार्ग छे; तेमां द्रव्य–पर्याय, निश्चय–व्यवहार,
शुद्ध अने शुभ, पुण्य अने पाप, बधानुं स्वरूप जेम होय तेम ओळखवुं जोईए, ने तेमांथी
पोतानुं हित क्या प्रकारे छे तेनो विवेक करवो जोईए. एक भूमिकामां निर्मळता होय ते जुदी
ने राग होय ते जुदो,–बंनेनुं मिश्रण नथी. व्यवहारना स्थानमां व्यवहार होय छे, पण
निश्चयस्वभावनुं अवलंबन करनारने अंतरमां व्यवहारनुं अवलंबन रहेतुं नथी.