Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 41 of 45

background image
: ३८ : आत्मधर्म : फागण : २४९प
प्रवचनमां समयसारमांथी पहेलो मंगळ श्लोक नमः समयसाराय...वांच्यो तेमां कह्युं के
भाई! जेने जाणतां जाणनारने आनंद थाय एवो तो आ आत्मा छे. आत्मा अंतर्मुख
थईने ज्यारे पोते पोताने जाणे छे त्यारे तेने साचुं ज्ञान अने सुख छे. अरे, पोते
पोताने न जाणे–एने सुख केवुं? ने ज्ञान केवुं? बापु! आवो अवसर मळ्‌यो तेमां
आत्माने जाणवा जेवुं छे. ध्रुवअविनाशी स्वभावना अवलंबने मोक्षपुरी तरफ चाल्यो
जतो मोक्षनो मुसाफर जीव, वच्चे झाडनी छायानी माफक संसर्गमां आवता रागादि
परभावो–तेने ते पोताना मानतो नथी, ते छायारूपे (रागरूपे) हुं थई गयो एम ते
मानतो नथी पण ज्ञानस्वभावे ध्रुव रहेनार हुं छुं–एम ते अनुभवे छे. आवो अनुभव
ने आवुं ज्ञान ते आनंदकारी छे, ए सिवाय बीजे क्यांय आनंद नथी; संयोगो तो बधा
जीवने माटे अध्रुव छे, तेनुं शरण नथी.
माह वद ७ ने रविवार (ता. ८) ना रोज गुरुदेव राणपुरथी अमदावाद
पधार्या; अमदावादना अने गुजरातना मुमुक्षुओए उमंगभेर गुजरातना पाटनगरमां
भव्य स्वागत कर्युं...स्वागतमां बे हाथी हता. वच्चे जिनमंदिरमां दर्शन कर्या ने पछी
सारंगपुरमां (पारसनगरमां) भव्य प्रतिष्ठामंडप वच्चे मंगल संभळावतां कह्युं के हे
धर्मजिनेश्वर! एटले परमार्थे अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदथी भरेलो आत्मा, तारो मन रंग
लाग्यो छे, ते रंगमां भंग पडवानो नथी; आत्मानो रंग लगाडीने तेने साधवा जाग्यो
तेमां हवे वच्चे बीजो रंग लागवानो नथी, ए अमारी टेक छे, तीर्थंकरोना कूळना अमे,
अमारी टेक छे के चैतन्यना रंगमां वच्चे बीजो रंग लागवा द्ये नहीं. आम
अप्रतिहतभावरूप मंगलाचरण कर्युं.
शहेरना भरचक लत्ता वच्चे प्रतिष्ठा–महोत्सव माटेनो मंडप घणो विशाळ हतो.
जिनमंदिर (जेनुं बांधकाम हजी चालु छे ने कुल छ लाख रूा. ना खर्चनो अंदाज छे–)
ते पण शहेरना भरचक लत्ता वच्चे घणुं विशाळ छे. सवारे कर्ताकर्म–अधिकार उपर
प्रवचनो थता, अने बपोरे पद्मनंदीपच्चीसीमांथी ऋषभजिनस्त्रोत उपर प्रवचनो
थता. शरूमां रात्रे तत्त्वचर्चा पण थती; प्रवचनमां तेमज चर्चामां पाटनगरनी जनता
हजारोनी संख्यामां लाभ लेती हती. अने पंचकल्याणक उत्सव नजरे नीहाळवा सौ
आतूरताथी राह जोता हता. अंते माह वद तेरस आवी...ने पंचकल्याणकनी मंगल
वधाई लावी.