: ८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
झेरी नागना झेर स्वभाव छूटी गया. मोटा राजकुमारो ए वाणी झीली आत्मज्ञान
पाम्या.....निर्विकल्प चैतन्यतत्त्व शुं चीज छे–तेनो उपदेश भगवाननी वाणीमां आव्यो.
तेनो प्रवाह आजेय चाल्यो आवे छे. अंतरमां विचार–मनन करे तो पोताना पुरुषार्थथी
तेनी प्राप्ति थाय छे. ने स्वाश्रयना वीतरागभावरूप जे वीरमार्ग, ते वीरमार्गने साधीने
आत्मा पोते परमात्मा थाय छे.–आ छे महावीरनो सन्देश.
बोलिये....भगवान....महावीर की जय.....
महावीर–मार्ग प्रकाशक सन्तोंकी जय....
“
“देह तो क्षणभंगुर छे”
“देह तो क्षणभंगुर छे, संसारना
संयोगी पदार्थनो वियोग अवश्य थाय छे.
मुख्य एक ज्ञायकस्वभाव छे तेनुं शरण करवा
जेवुं छे. गुरुदेवनो परम उपकार छे, तेथी सर्वे
समाधान थई शके छे.”
आ उद्गारो छे भाईश्री जगुभाईना–
जे तेमणे ईस्पितालमां एक दरदीने माह
मासमां कहेला, अने फागण मासमां तो पोते
चाल्या गया!