Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : ९ :
अमे जिनवरनां संतान (नवा सभ्योनां नाम)
२२८७ श्री हर्षदभाई देवजीभाई जैन सोनगढ
२२८८ श्री सबोधचंद्र एम. जैन अमदावाद
२२८९ श्री पंकजकुमार जैन मुंबई–२२
२२९० श्री मनीषकुमार कांतिलाल जैन अमदावाद
२२९१ श्री पंकजकुमार रमणीकलाल जैन रखियाल स्टेशन
२२९२ श्री अरविंदकुमार छोटालाल जैन ”
२२९३ श्री सुरेखाबहेन जैन
२२९४ श्री भारतीबहेन जैन रखियाल स्टेशन
२२९प श्री प्रज्ञाबहेन ईश्वरलाल जैन राजकोट
२२९६ A श्री आशाबहेन महेन्द्रलाल जैन दाहोद
२२९६ B श्री सुधाबहेन एम. जैन दाहोद
२२९७ श्री संगीताबहेन जैन अमदावाद
२२९८ श्री हर्षदभाई जैन सुरेन्द्रनगर
२२९९ श्री मिलनकुमार जैन सुरेन्द्रनगर
२३०० श्री नवीनभाई शांतिलाल जैन मुंबई–११
२३०१ A श्री निर्मळाबहेन जैन अमदावाद
२३०१ B श्री जयाबहेन जैन अमदावाद
२३०२ श्री मगनलाल भीमजीभाई जैन सोनगढ
२३०३ श्री बीपीनकुमार देवशंकर जैन सोनगढ
२३०४ श्री हेमंतकुमार मनसुखलाल जैन सोनगढ
२३०प श्री भरतकुमार कांतिलाल जैन सोनगढ
२३०६ श्री निर्मळाबहेन जैन महेसाणा
२३०७ A श्री विनोदराय कांतिलाल जैन महेसाणा
२३०७ B श्री साधनाबहेन बी. जैन महेसाणा
२३०८ A श्री मुकेशकुमार बी. जैन महेसाणा
२३०८ B श्री वर्षाबहेन बी. जैन महेसाणा
बधा बालसभ्योने जणाववानुं के पू.
गुरुदेव प्रत्येनी ‘उपकार–अंजलि’ नो आपणो
हस्तलिखितअंक वैशाख सुद बीजने बदले थोडो
विलंबथी तैयार थई शकशे. घणा सभ्यो परीक्षानी
तैयारीमां छे तेथी लखाण मोकली शकया नथी; तो
परीक्षा पछी तेओ पण लखाण मोकली आपे.
वैशाख सुद बीजे ‘उपकार–अंजलि’ ने बदले
गुरुदेवनुं जीवनचरित्र प्रगट थशे; तमे ते जरूर
वांचजो; एमांथी तमने घणुं जाणवानुं मळशे, ने
आत्माने उत्तम प्रेरणाओ मळशे.
* नगीनभाई अने वींछीयाना
सभ्यो; तमारा तरफथी उपकार–अंजलिनी त्रण
बुक मळी छे. भावपूर्वक सुंदर संकलन करवा
माटे धन्यवाद!
* आकोलाथी अमीचंदभाई वगेरे
गुरुदेव प्रत्ये एक काव्य–अंजलि साथे लखे छे
के–गुरुदेव पंचमआराना पारसमणि,
रत्नचिंतामणि छे. “आत्मवैभव” संपूर्ण
वंचावीने तेमांना भावोनुं रहस्य समजतां जे
आत्मशांति थई छे, ने आत्माना प्रभाव–
प्रभुता वगेरे शक्तिना वर्णनमां अमूल्य भावो
भर्या छे, तेनुं वर्णन लखी शकातुं नथी.
* देवजीभाई! तमारुं ‘चक्र’ मळ्‌युं, परंतु ए
चक्करमां सुधारानी जरूर छे. बाकी तमारी भावना
व्यक्त करतां तमे लख्युं ते योग्य छे के गुरुदेवे
बतावेला ज्ञान मारगडे चालतां मुमुक्षुने महान
आनंद थाय छे; आत्मधर्ममां तेमनां अमृतप्रवचन
वांचता ज्ञान–वैराग्य प्राप्त थाय छे.
वीतरागमार्गनो मर्म एटले के आत्मानुं स्वरूप
बतावीने गुरुदेवे महान उपकार कर्यो छे.