Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : ७ :
वीर एवो जे आत्मा, ते अंतरना पुरुषार्थनी वीरता वडे वीरना वीतरागमार्गे चडे, ते ज
वीरनो मार्ग छे, एवो वीरनो मार्ग अफरगामी छे...वीरना मार्गे जे चडयो ते वीतराग
थये छूटको.....
भगवानना भक्त कहे छे के अहो, वीरजिनेश्वर! तारा चरणे लागुं ने तारा मार्गने
साधुं...अंतरमां चैतन्यरसनी भरेलो असंख्यप्रदेशी दरियो, तेने साध्यो त्यां मोह भाग्यो,
ने जीतनगारा वाग्या......अहो, आवुं वीरपणुं तो आत्मामां ज छे. कायरने आ वात
आकरी लागे छे, ने बाह्यद्रष्टिनी–पराश्रयनी वात सहेली लागे छे. पण हवे नाथ! अमे तो
आपणी वाणीथी जाण्युं के वीरपणुं तो आत्मामां ज छे. ज्ञान–चारित्रनी शक्तिद्वारा
अंदरना आ धु्रवपदनी प्राप्ति थाय छे. अरे प्रभु! तारामां रहेली तारी प्रभुताने तें कदी
जाणी नथी. अनंती तारी शक्ति, तेने पहिचान्या वगर, अनादि परभावोमां धर्म मानीने
तें तारा आत्मानी हिंसा करी छे, ते अधर्म छे. अने रागथी पार चैतन्य स्वभाव छे, तेने
शुभाशुभथी पार ओळखवो ने रागादि परभावोथी चैतन्यप्राणने जरापण हणावा न
देवा–ते खरी अहिंसा छे, ए ज वीरनी अहिंसा छे........ए ज वीरनी हाक छे.
संतो ते सर्वज्ञना प्रतिनिधि छे, तेओ सर्वज्ञनो सन्देश जगतने संभळावे छे के अरे
जीवो! प्रतीत तो करो.......तमारामांय आवुं सर्वज्ञपद भर्युं छे.....जगतना पदार्थो वगर ज
पोते पोताना स्वभावथी परिपूर्ण छे, पण “मारे अमुक परवस्तु वगर चाले नहि” एम
पराधीनद्रष्टिथी मान्युं छे ने तेथी ज पराश्रयथी संसारमां रखडयो छे. खरेखर तो परना
वगर ज (एटले के परना अभावथी ज) पोते पोताथी टकेलो छे. दरेक तत्त्व पोतानी
अस्तिथी ने परनी नास्तिथी ज टकेलुं छे. पोताना अनंतगुण पोतामां छे–
ज्यां चेतन त्यां अनंतगुण, केवळी भाखे एम,
प्रगट अनुभव आतमा.......निर्मळ करो सप्रेम रे......
चैतन्यप्रभु.....प्रभुता तमारी चैतन्यधाममां.....
वीरप्रभुए कहेली आ वाणी पात्र जीवोए झीली.....ने अंतर्मुख थईने
सम्यग्दर्शनादि पाम्या वीरप्रभुनी वाणीना धोध संतोए झील्या ने शास्त्रोमां संघर्या. अहा,
ए वाणी सांभळतां वाघना वक्रस्वभाव छूटी गया......सर्प अने नोळियाना वेर छूटी
गया,