छे; बहारना विकल्पोथी एनो पत्तो खाय तेम नथी. विकल्पनुं उत्थान चैतन्यस्वरूपमां
नथी, चैतन्यस्वरूपमां विकल्प होय तो टळे नहि. चैतन्यभाव अने विकल्प–रागभाव ए
बंनेनी जात ज जुदी छे. चैतन्यवस्तुने धु्रवस्वभावपणे जुओ तो ते मोक्षस्वरूप ज छे, तेने
शक्तिरूप मोक्ष कहेवाय छे; (सर्व जीव छे सिद्धसम; अथवा सिद्धसमान सदा पद मेरो.....)
ते स्वभावनी सन्मुख थतां पर्यायमांथी रागद्वेष–मोहरूप बंधननो अभाव थईने
वीतरागी मोक्षदशा प्रगटे छे ते व्यक्तिरूप मोक्ष छे. अहीं तेना कारणरूप शुद्धपर्यायनी
विचारणा छे. मोक्षना कारणरूप जे शुद्धपर्याय छे तेमां आनंदनुं वेदन छे ने रागनो अभाव
छे, ते धु्रवस्वभावने अवलंबनारी छे. जीवने पोताना असली चिदानंदस्वभावनी किंमत
भासे तो तेने रागादि परभावोनी किंमत ऊडी जाय, ने बहारना अल्प जाणपणानो
महिमा छूटी जाय, एटले तेनाथी विमुख थईने अंतरमां चैतन्यचमत्कारनी सन्मुख थाय.
अस्थिर भावोमां द्रष्टि थंभती नथी, महिमावंत एवो पोतानो स्थिर स्वभाव तेमां द्रष्टि
करे तो त्यां द्रष्टि थंभे ने परमआनंदना वेदनरूप दशा प्रगटे. –आवी दशा ते मोक्षनुं कारण
छे. मोक्षना आवा मार्गने अनादिथी जीवे जाण्यो नथी. –साधे तो क्यांथी? अंदर पोतानी
वस्तुमां केटली ताकात ने केटलो आनंद भर्यो छे तेनुं माप काढतां जीवने आवडयुं नथी. ते
माप कई रीते नीकळे? अंतर्मुख ज्ञानपर्यायवडे तेनुं माप नीकळे, विकल्प वडे एनुं माप न
नीकळे. अंदरमां आनंदनी अखूट खाण भरी छे तेने अवलंबीने जे भाव थाय ते ज
पूर्णानंदरूप मोक्षदशानुं कारण थाय तेने शुद्धउपादानकारण पण कहेवाय छे. त्रिकाळीद्रव्यने
पण शुद्धउपादान कहेवाय छे, ने तेना आश्रये थयेली शुद्धपर्यायने पण शुद्धउपादान कहेवाय
छे; अने कोईवार पूर्व पर्यायरूप वर्तता द्रव्यने उत्तरपर्यायनुं उपादान कहेवाय छे.
द्रव्यपर्यायरूप वस्तुमां जे