: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : १९ :
विषयरूप छे. भावना कहो, शुद्धचैतन्यपरिणाम कहो, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र कहो,
उपशमादि भाव कहो, के मोक्षमार्ग वगेरे नाम कहो, ते बधा एकपर्यायने ज लागु पडे छे.
ते पर्याये अंतर्मुख थईने पोताना परमस्वभावनुं अवलंबन लीधुं छे, ते शुद्धात्मअभिमुख
थई छे. जीवनी आवी दशा थाय त्यारे ते मोक्षमार्गमां आव्यो कहेवाय.
अहो, आ तो जैनधर्मना स्याद्वादनी सुगंध छे. शुद्धद्रव्यनी भावना वडे शुद्धपर्याय
थई, एटले द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेय रागरहित शुद्ध थया. परमात्मानी भावनारूप जे
भाव छे तेना वडे चैतन्य परमेश्वरना दरबारमां प्रवेशाय छे; ते भावनामां निश्चयरत्नत्रय
समाई जाय छे, पण रागनो प्रवेश नथी. भाई, तारी मोक्षपर्यायनुं कारण देहादि परमां तो
नहीं, रागादि उदयभावमां पण नहीं, धु्रवस्वभावनी सन्मुख जोये मोक्षमार्ग प्रगटे छतां
धु्रवस्वभाव पोते मोक्षना कारणरूप थतो नथी, मोक्षना कारणरूप भावनापरिणति छे.
उत्पाद–विनाश वगरनो, बंध मोक्ष वगरनो, परमआनंदथी भरेलो जे सहज पारिणामिक
परमभाव छे तेमां पर्याय एकाकार थतां अतीन्द्रिय आनंदनुं झरणुं वहे छे. आवा
निजस्वरूपने भाववुं–अनुभववुं–तेमां परिणमवुं ते मोक्षनी साची भावना छे. आवी
भावना वडे भवनो अभाव थाय छे.
अरे जीव! तारा आवा उत्तम तत्त्वनी भावना तो कर, आवा तत्त्वना अनुभवनी
तो शी वात! –एना विचार करे तोपण शरीर ने रोग बधुं भूलाई जाय तेवुं छे. शरीरनी
संभाळ (ममता) आडे आत्माने भूली रह्यो छो, तेने बदले शरीरने भूलीने आत्मानी
संभाळ करने! शरीर क््यां तारुं साचव्युं सचवाय छे? तुं गमे तेटली एनी संभाळ कर
छतां ए तो काळे छूटी जवानुं छे. तेनी ममता करीने मफतनो तुं दुःखी थईश. क््यां
मृतककलेवर शरीर, ने क््यां आनंदथी भरेलो आत्मा! बंने जराक एकक्षेत्रे रह्या त्यां तो
आत्मा पोताने भूलीने शरीररूपे ज मानी बेठो. बापु! तुं शरीर नथी, तुं तो अरूपी
आनंदघन छो......जाणनारो जागतो भाव ते ज तुं छो. –आवा आत्माने लक्षमां ले.
आत्माना पांच भावोमां कया भावो मोक्षनुं कारण छे तेनुं आ वर्णन चाले छे.
स्वभावनी भावनाथी प्रगटेलो औपशमिकादि त्रणभावो मोक्षनुं कारण छे, ने ते त्रणे
भावो रागरहित छे एटले रागने (औदयिकभावने) मोक्षकारणमां न लेवो; आ रीते
अस्ति–नास्तिरूप अनेकांतथी मोक्षमार्गनुं स्वरूप स्पष्ट कर्युं. आवा मोक्षमार्गनी शरूआत
चोथा गुणस्थानमां थई गई छे. रागरहित एवो उपशमादिभाव, एटले के शुद्धआत्मानुं
अवलंबन चोथा गुणस्थानथी शरू थई जाय छे. जेटलुं शुद्धात्मानुं अवलंबन तेटली शुद्धता
छे, ने ते शुद्धतानां ज उपशमादि नामो छे,