: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : २१ :
भगवान महावीर......तेमनो वीरमार्ग
(सोनगढ परिवर्तनधाममां चैत्र सुद तेरसे गुरुदेवनुं प्रवचन)
आजे चोवीसमा तीर्थंकर भगवान महावीरना जन्मनो कल्याणक दिवस छे. ईद्रो
पण तेनो उत्सव ऊजवे छे. भगवाननो जन्म घणा जीवोने तरवानुं कारण छे. तेथी ते
कल्याणक छे. ते आत्मा पोते आत्मभान करीने उन्नतिक्रममां चडतां चडतां पूर्णानंददशाने
आ भवमां पामवानो छे. पूर्वभवमां आत्मानुं भान करीने वीरता प्रगट करी, पण हजी
पूर्णता थई न हती त्यारे धर्मनी पूर्णता प्राप्त करवानी भावनामां वच्चे विकल्पथी
तीर्थंकरनामकर्म बंधायुं. चैतन्यना अतीन्द्रियस्वभावनी किंमत करीने अंतरमां तेनुं वेदन
करतां करतां आ अवतार थयो छे. पहेलां स्वभावनी किंमत भूलीने अज्ञानथी संयोगनी
किंमत करतो, पछी चिदानंद स्वभावनुं भान करीने तेनी किंमत ने महिमा आवतां
भगवाननो आत्मा तेना वेदन तरफ वळ्यो....अहो, आ भवमां भगवाने आत्मानी
साधना पूरी करी. ईंद्रो भगवानने आजे मेरूपर्वत उपर जन्माभिषेक करवा लई गया
हता. चैतन्यवज्रमां जेम विभाव न प्रवेशे, तेम भगवाननुं शरीर पण वज्रकाय हतुं.
मणिरत्नना मोटा मोटा घडा भरीने पाणी मस्तक उपर ईंद्रो रेडे–छतां भगवानने जराय
आंच नथी आवती. अंदरमां रागनी आंच नथी आवती, रागथी अलिप्त रहे छे. अंतरमां
चिदानंद तत्त्वने देहथी पार ने रागथी पार देख्युं छे, –एने जोतां ईन्द्र ने ईंद्राणी पण
भक्तिथी नाची ऊठे छे. अहा, अनादिना संसारनो अंत करीने भगवान हवे आ भवमां
सादि–अनंत एवी सिद्धदशाने साधशे. राग अने स्वभावनी एकतारूप बेडीना बंधन तो
अमे पण तोडी नाख्या छे –एवा भानसहित, जेम माता पासे के पिता पासे बाळक
थनगन नाचे, तेम भगवान पासे ईंद्रो नाची ऊठे छे. हजी तो भगवान पण चोथा
गुणस्थाने छे, ने ईंद्र पण चोथा गुणस्थाने छे छतां ते ईंद्र भगवान पासे भक्तिथी नाची
ऊठे छे के अहा! आ भरतक्षेत्रनी धन्य पळ छे; वीरता प्रगट करीने पोते तो पूर्ण
परमात्मा थशे, ने जगतना घणा जीवोने पण भवथी तरवानुं निमित्त–बनशे. धन्य छे
भगवाननो अवतार! एना जन्मनी धन्य घडी, धन्य पळ ने धन्य दिवस छे. भगवाने
अमृतना सागरने ऊछाळीने मुनिदशा अने केवळज्ञान प्रगट कर्युं, पछी पावापुरीथी
मोक्षधाम पाम्या.