Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : २३ :
कहीने तेने प्रत्यक्षज्ञाता कह्या. आत्मा पोते ईंद्रियोनी अपेक्षा वगर, मनना के विकल्पना
अवलंबन वगर स्वभावथी ज स्वसंवेदनवडे पोताने जाणे छे.
उपयोग ते आत्मानुं चिह्न छे. ते उपयोग नामना लक्षणमां ज्ञेयोनुं अवलंबन
नथी, पण ते उपयोग आत्माने ज अवलंबीने काम करे एवो तेनो स्वभाव छे.
उपयोगवडे बहारनुं घणुं जाण्युं के घणा शास्त्रो वांच्या माटे हवे उपयोगने अंतरमां
वाळवानुं सहेलुं पडशे–एम नथी. उपयोगने आत्मानुं ज अवलंबन छे; एकला शास्त्रना
अवलंबनवाळो उपयोग ते खरो उपयोग नथी. तेमां परावलंबन छे, तेमां उपयोगनी
हानी छे. उपयोग पोतानो ने अवलंबन करे परनुं–तो एवा उपयोगने आत्मानो उपयोग
कोण कहे? उपयोग अंतरमां वाळीने आत्मद्रव्यनुं अवलंबन करे ते ज खरो उपयोग छे.
तेमां ज आत्मानुं ग्रहण छे. आत्मानुं घर छोडीने एकला परघरमां ज फरे–तो एवी
परिणतिने शास्त्रो बाह्य बुद्धि कहे छे. भाई, उपयोगने अंतरमां वाळ्‌या वगर त्रण काळमां
सम्यग्दर्शन थतुं नथी, पण एकला शास्त्रना अभ्यासथी जे धर्म मानी लेतो होय, –ने
उपयोगने अंतरमां वाळवानो उद्यम न करतो होय–तो तेने कहे छे के ऊभो रहे, –एम
एकला शास्त्र तरफना उपयोगथी धर्म नहि थाय; उपयोगने अंतरमां वाळीने आत्माने
लक्षमां लीधा वगर कदी धर्म थाय नहीं. उपयोगने अंतरमां पण न वाळे ने शास्त्रनो
अभ्यास पण छोडी द्ये तो तो स्वच्छंदी थईने अशुभमां जशे. भले एकला शास्त्रथी अंतरमां
नथी जवातुं पण जेने आत्माना अनुभवनो प्रेम होय तेने तेना अभ्यास माटे शास्त्राभ्यास,
उपदेशश्रवण वगेरेनो पण प्रेम आवे छे. बन्ने पडखांनो विवेक करवो जोईए.
उपयोगने परालंबनथी छोडावीने, अंतरमां चैतन्यना अवलंबने पूर्णता साधी.
भगवान वीरे आ काम कर्युं ने जगतने पण ए ज सन्देश आप्यो. अहो, अनादिना विकारनो
अंत करी नाख्यो; ने अप्रतिहत निर्मळ दशा प्रगट करी. जे सदाकाळ स्वालंबने एम ने एम
अनंत–अनंतकाळ टकी रहेशे. आवुं भगवान वीरे कर्युं ने तेनो ज उपदेश आप्यो. आ रीते
मोक्षने साधीने मोक्षनो पंथ बताव्यो तेथी भगवाननो उत्सव उजवाय छे.
वीरप्रभुए उपयोगने अंतर्मुख करीने, आत्मिक वीरता वडे मोक्षदशा साधी, अने
उपदेशमां पण ए ज मार्गनी हाकल करी, के हे जीवो! तमारा उपयोगने अंतरमां वाळीने
आत्माने स्वसंवेदनप्रत्यक्ष करो. आ ज वीरनो मार्ग छे.
जय महावीर