Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
पं. बुधजनरचित छहढाळा! बीजी ढाळ: (संसारदुःख वर्णन)
(जोगीरासा)
सुन रे! जीव कहत हूं तुझसे तेरे हितके काजे,
हो निश्चल मन जो तू धारे तो कुछ ईक तोहि लाजे;
जिस दुःखसे थावर तन पाया वरण सकों सो नाहीं,
अठदसवार मरा और जन्मा एक श्वासके माहीं. (१)
काल अनंतानंत रहो यों पुन विकलत्रय हूवो,
बहुरि असैनी निपट अज्ञानी क्षणक्षण जन्मो मूवो;
पुण्य उदय सैनी पशु हूवो बहुत ज्ञान नहिं भालो,
ऐसे जन्म गये कर्मोंवश तेरा जोर न चालो. (२)
जबर मिलो तब तोहि सतायो, निबल मिलो तें खायो,
मात तियासम भोगी पापी तातें नर्क सिधायो;
कोटिक बिच्छू काटें जैसे ऐसी भूमि जहां है,
रुधिरराधिजलछार वहे जहां दुर्गंधि निपट तहां है (३)
घाव करे असिपत्र अंगमे शीत–उष्ण तन गालें,
कोई काटें कर गहि केई पावकमें परजाले;
यथायोग्य सागरस्थिति भुगतें दुःखका अंत न आवे,
कर्मविपाक ऐसा ही होवे मानुषगति तब पावे. (४)
मात उदरमें रहे गेंद हो निकसत ही बिल लावे,
डावा डांक कलां विस्फोटक डांकनसे बच जावे;
तो यौवनमें भामिनके संग निशदिन भोग रचावे,
अन्धा हो धन्धा दिन खोवे बूढा नाडि हलावे. (प)
यम पकडे तब जोर न चाले सेनही सेन बतावे,
मन्द कषाय होय तो भाई भवनत्रिक पद पावे;
परकी सम्पत्ति लखि अति झूरे के रति काल गमावे,
आयुअन्त माला मुरझावे तब लख लख पछतावे. (६)
तहांसे चलके थावर होवे रुलता काल अनंता,
या विधि पंच परावर्तन के दुःखका नाहीं अन्ता;
काललब्धि जिन गुरुकृपासे आप आपको जानें;
तबहीं
बुधजन भवोदधि तरके पहुंच जाय निर्वाणे. (७)
(अर्थ माटे सामुं पानुं जुओ)