पं. बुद्धजनरचित छहढाळाने अनुसरीने लखी छे. संसारभ्रमणना दुःखनुं
कथन पं. दौलतरामजीए पहेली ढाळमां कर्युं छे ने बुद्धजनजीए बीजीमां.)
अज्ञानथी हुं केटलो बधो दुःखी थयो! स्थावर शरीर पामीने तुं जे दुःख पाम्यो ते वर्णवी
शकाय तेम नथी. एकश्वासमां अढारवार तो तुं जन्म्यो ने मर्यो.
कर्या. कोईकवार पुण्यउदयथी संज्ञी पशु थयो तोपण विशेषज्ञान न पाम्यो; ए प्रमाणे
अज्ञानथी कर्मोने वश थईने तें अनंत जन्म गुमाव्या, पण ज्ञान वगर तारुं जोर न चाल्युं.
नरकमां जई पड्यो; ज्यांनी कर्कशभूमि एवी छे के तेनो स्पर्श थतां ज जाणे करोडो वींछी
करडता होय–एवुं दुःख थाय छे. ज्यां अत्यंत दुर्गंधी लोही परु ने खारा जळ जेवी वैतरणी
नदी वहे छे.
बंधअनुसार सागरोपम सुधी एवा तीव्र दुःखो भोगवतां पार आवतो नथी. क््यारेक
मंदकषायअनुसार शुभकर्मनो विपाक थतां ते नरकमांथी नीकळीने मनुष्यगति पामे छे.
चेचक वगेरेथी कदाच बची जाय तो युवानीमां निशदिन भामिनी साथेना भोगविलासमां
ज राचे छे, ने वेपार धंधामां अंध थईने जींदगी खोई नाखे छे, ज्यारे बूढो थाय