Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : २५ :
पं. बुधजनरचित छहढाळा! बीजी ढाळ: (संसारदुःख वर्णन)
(पं. श्री दौलतरामजीनी छहढाळा–के जेनो हालमां खूब प्रचार छे, ते तेमणे
पं. बुद्धजनरचित छहढाळाने अनुसरीने लखी छे. संसारभ्रमणना दुःखनुं
कथन पं. दौलतरामजीए पहेली ढाळमां कर्युं छे ने बुद्धजनजीए बीजीमां.)
(१) संभाळ, रे जीव! तारा हितने माटे तने कहुं छुं. जो आ हितनी वात स्थिर
चित्त थईने तुं अवधारीश तो, तने लज्जा आवशे के अरे! अत्यार सुधी आ में शुं कर्युं?
अज्ञानथी हुं केटलो बधो दुःखी थयो! स्थावर शरीर पामीने तुं जे दुःख पाम्यो ते वर्णवी
शकाय तेम नथी. एकश्वासमां अढारवार तो तुं जन्म्यो ने मर्यो.
(२) ए प्रमाणे एकेन्द्रियपर्यायमां अनंतानंतकाळ वीतावीने क््यारेक विकलत्रय
थयो; क्यारेक पंचेन्द्रि थयो तोपण असंज्ञी महा अज्ञानी रह्यो ने क्षणे क्षणे जन्म–मरण
कर्या. कोईकवार पुण्यउदयथी संज्ञी पशु थयो तोपण विशेषज्ञान न पाम्यो; ए प्रमाणे
अज्ञानथी कर्मोने वश थईने तें अनंत जन्म गुमाव्या, पण ज्ञान वगर तारुं जोर न चाल्युं.
(३) ताराथी बळवान पशुओए तने सताव्यो– दुःखी कर्यो, अने निर्बळ मळ्‌या
तेने मारीने तुं खाई गयो; पशुपणे माताने स्त्रीसमान भोगवी; आ रीते पापी थईने
नरकमां जई पड्यो; ज्यांनी कर्कशभूमि एवी छे के तेनो स्पर्श थतां ज जाणे करोडो वींछी
करडता होय–एवुं दुःख थाय छे. ज्यां अत्यंत दुर्गंधी लोही परु ने खारा जळ जेवी वैतरणी
नदी वहे छे.
(४) ते नरकमां तलवार जेवा सेमलनां पान शरीरने छेदी नांखे छे, ठंडी अने
गरमी देहने गाळी नांखे छे; कोई नारकी तेने पकडीने कापे छे ने अग्निमां बाळे छे.
बंधअनुसार सागरोपम सुधी एवा तीव्र दुःखो भोगवतां पार आवतो नथी. क््यारेक
मंदकषायअनुसार शुभकर्मनो विपाक थतां ते नरकमांथी नीकळीने मनुष्यगति पामे छे.
(प) त्यां पण प्रथम तो माताना उदरमां संकोचाईने (दडानी माफक) नवमास
पुराई रहे छे, अने पछी जन्मती वखते त्रासथी रडे छे. बाळपणमां अनेक प्रकारनां रोग
चेचक वगेरेथी कदाच बची जाय तो युवानीमां निशदिन भामिनी साथेना भोगविलासमां
ज राचे छे, ने वेपार धंधामां अंध थईने जींदगी खोई नाखे छे, ज्यारे बूढो थाय