: २८ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
प्रभुजीनो जन्माभिषेक नीरखीने सौ धन्य बन्या.....वाह प्रभु! आपनो आ अंतिम
अवतार!! हजी केवळज्ञान तो ३०० वर्ष पछी पामशो, पण अत्यारे ज आप जन्मथी
तो रहित थई गया! जन्म रहितनो जन्माभिषेक केवो आश्चर्यकारी छे!! ए
जन्माभिषेक ऊजवीने नगरीमां पाछा आव्या ने ईन्द्रोए तांडवनृत्य द्वारा पोतानो
आनंद व्यक्त करीने माता–पितानुं बहुमान कर्युं: धन्य रत्नकुखधारिणी माता! तें
जगतने मोक्षनो मार्ग देखाडनारो दीवो आप्यो.’ शिवादेवी माताजी पण पोताना
बालकुंवरने गोदमां तेडीने परम प्रसन्न थया. सभाजनो ए द्रश्य नीहाळीने आनंदथी
बोली ऊठ्या: धन्य माता....धन्य पुत्र!
बपोरे प्रवचन पछी प्रभुनुं पारणाझूलन थयुं....भगवानने झुलावनारा
हजारो हाथो पावन बन्या.....जगतना नाथ मारी गोदमां बिराजे छे–एवा हर्षथी
पारणीयुं पण आनंदथी झूलतुं हतुं. रात्रे राजसभामां सेंकडो राजाओ आवीने भेट
धरता हता...श्री कृष्ण अने बलभद्र जेवा पण आनंदथी नाची ऊठ्या हता....एक
युरोपियन मुसाफर आवेला ते तो आ बधुं देखीने अचंबामां पडी गया. राजुलदेवी
साथे नेमनाथना विवाहनी तैयारी चालती हती....जान अने रथमां नेमिनाथनुं द्रश्य
दूरदूरथी राजुल नीहाळती हती....एकबाजु पशुडां करुण चित्कार करतां हतां....ए
करुणचित्कार सांभळतां नेमनाथे रथ थंभावी दीधो ने संसारथी विरक्त थया. ए
प्रसंगनो सारथी साथेनो संवाद, राजुलनी मनोदशा, निर्मोही नेमप्रभुनी अडगता–
वगेरेनुं वातावरण अनेरुं हतुं. दसपंदर हजार माणसो जोई रहेता के हवे शुं बनशे!
फागण सुद त्रीजनी सवार पडी.....लौकांतिक देवो आवी पहोंच्या, भगवानना
वैराग्यनी स्तुति अने अनुमोदना करी....प्रभुजीनो वनविहार शरू थयो.....वैराग्य प्रसंगनी
दीक्षायात्रा अद्भुत हती..... गुजरात–सौराष्ट्रमां ८प००० वर्षो पूर्वे थयेला ए
कल्याणकप्रसंगो फरीने गुजरातना पाटनगरमां नीहाळीने गुजरात धन्य
बन्युं......दीक्षावनमां (कांकरीयाना किनारे व्यायाम मंदिरना चोकमां) प्रभुए दीक्षा अंगीकार
करी....संसार छोड्यो ने शुद्धोपयोगमां लीन थईने साक्षात् मोक्षमार्गरूप परिणम्या.... धन्य
ए मुनिराज! धन्य ए रत्नत्रय–चारज्ञानधारी संतने! ए नेममुनिराजना दर्शन करीने सौ
पावन थया. मुनिराजनी पूजा करी.....ने पछी तो मुनिराज वनमां अंतर्धान थई गया.
ए दीक्षावनमां भगवाननी मुनिदशानुं स्वरूप समजावतुं, अद्भुत
वैराग्यरसभीनुं प्रवचन गुरुदेवे कर्युं,...ने ए मुनिदशानी भावना भावी....अहा, आ
तो धमालीया अमदावाद शहेरमां बेठा छीए–के गीरनार वच्चे सहेसावनना शांत
वातावरणमां बेठा छीए! –एम प्रवचन वखते अमदावादने भूलीने सहेसावन याद
आवतुं हतुं. गुरुदेव भावभीनी शैलीथी कहेता हता के जुओ, भगवाने आजे दीक्षा
अंगीकार करीने मुनिदशा प्रगट करी. आ भवमां ज पूर्णानंदनी प्राप्ति