Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : २९ :
करवानो छुं, ते माटेनी भावना हती....ने आजे भगवान मुनि थया....गीरनारना
सहस्राम्रवनमां भगवान “नमो सिद्धाणं” एम सिद्धने नमस्कार करीने
आत्मध्यानमां लीन थया.....ते ज वखते ध्यानमां शुद्धोपयोग सहित सातमुं गुणस्थान
थयुं ने चोथुं मनःपर्ययज्ञान प्रगट थयुं. देहथी भिन्न चैतन्यनुं ज्ञान तो पहेलेथी
हतुं....अनुभव पण हतो, पण आजे तो साक्षात् चारित्ररूप मुनिदशा प्रगट करी.
दीक्षाकल्याणकना आ प्रसंगे कुदरतनुं वातावरण पण घेरा वैराग्यथी जाणे के
मुनिदशाने अनुमोदी रह्युं हतुं. आ उत्सव प्रसंगे त्रणचार भाईओए सजोडे
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी हती. दीक्षा पछी केशक्षेपण कांकरीयाना क्षीरोदधिमां थयुं....रात्रे
भक्ति–भजन–नाटकनो कार्यक्रम हतो.
फागणसुद ४ नी सवारे प्रवचन पछी, नेममुनिराज वनमांथी नगरीमां
पधार्या....वरदत्तराजा तरीके रोमेशचंद्र–बाबुभाई गोपालदासे प्रभुने पडगाहन
करीने नवधाभक्तिपूर्वक आहारदान कर्युं...... पोताना आंगणे आवो उत्तम अवसर
देखीने तेओने घणी प्रसन्नता थई. प्रभुजीना आहारदाननो प्रसंग नीहाळीने चारे
बाजुं आनंद आनंद छवाई गयो हतो.....जीवननो ए धन्य अवसर के ज्यारे
तीर्थंकरने मुनिदशामां आहारदान देवातुं होय! बपोरे श्री वीतरागीजिनबिंबो उपर
अंकन्यासविधान थयुं. कहानगुरुए ए वीतराग जिनबिंबोने ध्यावीने, मंत्राक्षर वडे
पूजित बनाव्या. ईंदोरना विद्वान प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री नाथुलालजी बधी विधि सौने
समजाय ते रीते शास्त्रानुसार करता हता. प्रतिष्ठामहोत्सवमां जनतानो उल्लास
नीहाळीने वारंवार तेओ प्रमोद बतावता.....ने कहेता के अत्यारसुधी में केटलीये
प्रतिष्ठाओ करावी, पण जेटला ईंद्रो अहींना उत्सवमां उल्लासथी भाग लई रह्या छे
एटला ईंद्रो बीजे क्यांय हजी सुधी थया नथी. खरेखर, कहानगुरुनो प्रभाव अनेरो छे.
अंकन्यास पछी थोडी वारमां भगवंतोने केवळज्ञान थयुं.....ज्ञानदीवडा अने
समवसरणथी वेदी शोभी ऊठी. ईंद्रोए भगवानना केवळज्ञाननुं पूजन कर्युं.
त्यारबाद दिव्यध्वनिना साररूप प्रवचन थयुं. प्रवचन पछी बीजा दिवसनी भव्य
रथयात्रा संबंधी जे ऊछामणी थई ते एक ज कलाकनी ऊछामणीमां एकलाख रूा.
जेटली बोली थई....आ उपरथी उत्सवना वातावरणनो ख्याल आवशे. रात्रे
किसनगढनी भजन मंडळीए सीताजीनो वनवास अने अग्निपरीक्षानुं भव्य नाटक
चार कलाक सुधी रजु कर्युं हतुं–जे घणुं सुंदर कळामय अने भावभीनुं हतुं. पंदर हजार
उपरांतनी जनता मुग्ध बनीने ते नीहाळी रही हती.
फागण सुद पांचम: सवारमां निर्वाणकल्याणक थयुं. आ तरफ भव्य
जिनालयमां मोटुं कमळ हजार हजार पांखडी फेलावीने आतुरताथी राह जोतुं हतुं