: ३६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
भगवान आदिनाथना कल्याणको थता हता, ते ज वखते प्रवचनमां पण आदिनाथ
स्तोत्रमांथी आदिनाथप्रभुना कल्याणकोनुं अद्भुत आध्यात्मिक वर्णन गुरुदेव भावभीनी
शैलिथी करता हता. भगवान ज्यारे सर्वार्थसिद्धि विमान छोडीने अयोध्यापुरीमां अवतर्या
त्यारे सर्वार्थसिद्धिनी शोभा पण भगवाननी साथे ज अयोध्यामां आवी गई, एटले जे
सर्वार्थसिद्धिविमान भगवानने लीधे शोभतुं हतुं तेनी शोभा हवे झांखी पडी गई ने
अयोध्यानी शोभा वधी गई!–आम अलंकार करीने आचार्यदेव कहे छे के पुण्यनी शोभा
नथी, पण धर्मनी शोभा छे. प्रभो! आपना वगरनी सर्वार्थसिद्धि पण सुनीसुनी लागे छे.
अने आपना पधारवाथी आ पृथ्वी ‘सनाथ’ थईने नवांकुर वडे पुलकित बनी गई–अर्थात्
आपना निमित्ते आत्मामां धर्मना अंकुरा फुटया.....आम अनेक प्रकारे आत्मा साथे संधिपूर्वक
आदिनाथप्रभुनी स्तुति थती हती. तेथी उत्सवनुं वातावरण अद्भुत सुमेळवाळुं बन्युं हतुं.
फागण सुद १४ नी वहेलीसवारमां भगवान आदिनाथना जन्मवडे अयोध्या नगरी
पावनतीर्थ बनी गई....मरुदेवी माता जगतनी माता बन्या....धन्य ए रत्नकुंखधारिणी माता!
ईंद्रोना ईंद्रासन फरी डोली ऊठ्या....घंटनाद थवा मांड्या.....अने मंगलसूचक चिह्नो वडे
तीर्थंकरनो जन्मोत्सव जाणीने ईंद्र ऐरावत सहित आवी पहोंच्या....बीजी तरफ अयोध्यापुरीमां
नाभिराजाना दरबारमां ऋषभअवतारनी मंगल वधाई आवी ने आनंद–आनंद छवाई
गयो......देवीओ आनंदथी नृत्य ने मंगलगान करवा लागी.....शी ए जन्मोत्सवनी शोभा! ने
केवी अद्भुत ए सवारी! जाणे नगरी नानी ने सवारी मोटी! मेरु पर्वत उपर सवारी आवी
ने ईंद्रोए आदि–तीर्थंकरनो जन्माभिषेक कर्यो......अरे, हजारो मनुष्यो पण मेरु उपर पहोंची–
पहोंचीने ए जन्माभिषेकमां भाग लेवा लाग्या. पछी सवारी पाछी आवी ने माता–पिताने
एनो पुत्र सोंपीने हरिए तांडवनृत्य द्वारा पोतानो आनंद व्यक्त कर्यो. आखी नगरी आजे
आनंदमय बनी हती.
बपोरना प्रवचन पछी पारणाझूलन थयुं. ऋषभकुंवरने मरुदेवीमाता उपरांत
ईन्द्राणी पण भक्तिथी झुलावती हती. अनेक कुमारी बाळाओ रास वगेरे द्वारा भक्ति
करीने ऋषभकुमारने प्रसन्न करती हती. रात्रे ऋषभदेवनो राज्याभिषेक अने राजसभानां
द्रश्यो थया हता. सेंकडो राजाओ भेट धरता हता. कल्पवृक्षनो पण देखाव थयो हतो.
फागण सुद पूर्णिमा: भगवान ऋषभदेव राजसभामां बिराजमान छे; ईन्द्रद्वारा
नाटक थाय छे...... नीलंजसादेवी नृत्य करतां करतां तेनुं आयुष पूरु थई जाय छे.
संसारनी आवी क्षणभंगुरता देखीने, जातिस्मरणपूर्वक भगवान वैराग्य पामे छे; भरत–
बाहुबलीने राज सोंपे छे....लौकांतिकदेवो आवीने स्तुति करे छे ने