Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : ३ :
सर्वज्ञपद प्रगटे छे. त्यारे ते जीव सर्व पदार्थोने जाणे छे अने पूर्ण सुखने अनुभवे छे.
आवा सर्वज्ञपदने भव्य जीवो ज ओळखे छे.
आत्मानो स्वभाव ज्ञान–दर्शन छे. ते स्वभावनी प्रतिकूळता ते दुःख छे, अने ते
स्वभावमां प्रतिकूळतानो अभाव ते सुख छे. स्वभावनी प्रतिकूळता अथवा स्वभावनो
प्रतिघात–एटले शुं? ज्ञान–दर्शन पोते अतीन्द्रिय स्वभाववाळा होवा छतां, विषयोमां
प्रतिबद्धपणुं थतां तेनो स्वभाव हणाय छे, एनुं नाम स्वभावनी प्रतिकूळता छे.
अमर्यादित समस्त ज्ञेयोने जाणवानो स्वभाव होवा छतां, ते स्वभावनो आश्रय न लीधो
ने पराश्रयमां अटकी गयो, एटले स्वभावने न अनुसरतां परने अनुसर्यो तेनी
सर्वज्ञस्वभावथी प्रतिकूळता थई, पर्यायमां रूकावट थई; अंर्तस्वभावना आश्रये एकाग्र
थतां ते रूकावट गई एटले प्रतिकूळता टळी, अने पूर्ण ज्ञान प्रगट्युं; ते ज्ञान
अविनाभावी आनंद वाळुं छे.
आत्मा परिपूर्ण ज्ञान–आनंद स्वभावी छे; तेनो पूरो आश्रय करतां स्वभावनो
प्रतिबंध रहे नहि. स्वभावनो प्रतिघात थाय नहि, ए ज पूर्ण सुख छे. अने स्वभावनो पूरो
आश्रय न लीधो त्यारे रागवाळुं क्षायोपशमिक ज्ञान पोते ज्ञेयोमां प्रतिबद्ध थयुं, एटले
ज्ञानना पूर्ण स्वभावनो प्रतिघात थयो; कोई बीजाए नथी रोकयुं पण ज्ञाने पोते स्वभावनो
पूरो आश्रय न लीधो एटले ते ज पोते ज्ञेयोमां अटकतुं थकुं प्रतिबद्ध– वाळुं थयुं.
आत्मा सर्वज्ञस्वभावथी पूरो प्रभु छे, तेनामां प्रभुत्वशक्ति छे; एनी
प्रभुत्वशक्तिनो पूर्ण विकास करतां पर समयनी प्रवृत्ति छूटी जाय छे. अर्हंतादि प्रत्येना
रागमां रोकावुं ते पण ज्यां परसमय प्रवृत्ति अने कलेश छे, त्यां कुदेवादिनां सेवनरूप
मिथ्याप्रवृत्तिनी तो वात ज शी! अहीं तो कहे छे के पूर्ण जाणवाना सामर्थ्यरूप
सर्वज्ञस्वभाव अल्प मर्यादामां रोकाई जाय ते पण प्रतिबंध अने दुःख छे. स्वभावनो पूर्ण
आश्रय त्यां नथी तेथी दुःख छे. स्वभावनो पूर्ण आश्रय लेतां रागादिना प्रतिबंधनो
अभाव थाय छे ने पूर्ण ज्ञान सहित पूर्ण आनंद प्रगटे छे.
बापु! आ मनुष्य अवतार तो क्षणमां वींखाई जशे; तेमां आ आत्मानी प्रभुतानुं
भान करवा जेवुं छे. बाळ–बच्चांना शरीरमां पण भगवान आत्मा एवो ने एवो वर्ते छे,
ते कांई देहरूप थतो नथी. अंदर चैतन्यतत्त्व परमात्मशक्तिथी पूरुं छे; पण बहारमां
विषयोमां आनंद माननारा विषयानंदी जीवो तो महा झेरने सेवे छे.