: ४ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
अरे, तारी प्रभुतानुं भान तने नहीं! ने परमां तारा ज्ञानने तुं प्रतिबद्ध करी दे, –तो तेमां
दुःख छे, तारा स्वभावनी रुकावट छे. ते रुकावट, ते दुःख केम टळे? के सर्वज्ञस्वभावने
ओळखीने तेनो पूर्ण आश्रय करे त्यारे दुःख मटे, ने पूर्ण सुख प्रगटे. त्यां स्वभावनी
प्रतिकूळतानो अभाव छे. –आवी मोक्षदशा छे, तेमां अचलितपणे परमार्थसुखनो अनुभव
छे.–आवा आत्मानी श्रद्धा करनारा भव्यजीवो मोक्षमार्गने योग्य छे.
आवो मोक्षमार्ग प्रगट करवो ते अपूर्व मंगळ छे.
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राजकोटमां गुरुदेवना बंने प्रवचननोनी थोडी थोडी प्रसादी आपे चाखी; हवे साथे
साथे रातनी तत्त्वचर्चामांथी पण थोडो अध्यात्मरस चाखो:–
एक प्रश्नकारनो प्रश्न थयो के– ‘सत्पुरुषनी सेवाथी कल्याण थाय छे, ए वात केटला
टका साची?
जराय विलंब वगर गुरुदेवे कह्युं के सोए सो टका साची;–पण, सत्पुरुष एटले
परमार्थे पोतानो आत्मा एम समजवुं. (सत्पुरुषो पण एम ज कहे छे के तुं तारा सत्
आत्माने ओळखीने तेनुं सेवन कर.)
शुद्धनय अने तेना विषय संबंधमां केटलाय प्रश्नोत्तर थया; एक प्रश्न एम थयो के
अनुभवमां ज्यारे निर्विकल्प शुद्धनय होय त्यारे तेनो विषय शुं?
गुरुदेवे अंदरनी गंभीरताथी कह्युं के अध्यात्मद्रष्टिथी नय अने नयना विषयमां भेद
नथी; नय अने नयनो विषय बंनेने अभेद गणीने शुद्धजीवने (भूतार्थ आत्माने) ज शुद्धनय
कह्यो छे. अभेदद्रष्टिमां शुद्धनयने ज ‘भूतार्थस्वभाव’ कह्यो शुद्धनयनो विषय ‘भूतार्थ’, अने
भूतार्थ ते शुद्धनय–एम अध्यात्ममां नय अने नयनो विषय अभेद छे; तेमां भेद के विकल्प
नथी. पर्याये अंर्तस्वभावमां झुकीने तेने विषय बनाव्यो त्यारे शुद्धनय प्रगट थयो.
आम गुरुदेवना श्रीमुखथी आत्मरसनी मधुरी धारा वरसावतो मंगल मेहुलियो
वरसी रह्या छे, ने हजारो जीवो ते अमृतरसनुं पान करी रह्या छे....चालो, आपणे पण
त्यां जईए, ने गुरुदेव द्वारा पीरसाता अनुभवरसनो स्वाद चाखीए. जय जिनेन्द्र
आत्मधर्मनो आगामी अंक वैशाख सुद बीजना समाचारो सहित प्रगट
करवानो होवाथी पांच दिवस विलंबथी, एटले के त्रीसमी तारीखे पोस्ट थशे.