* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: १२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
अद्भुत व्याख्यानशैली अने सम्यग्दर्शननो महिमा
सं. १९९१ सुधी महाराजश्रीए स्थानकवासी संप्रदायमां रही बोटाद, वढवाण,
अमरेली, पोरबंदर, जामनगर, राजकोट वगेरे गामोमां चातुर्मास कर्यां अने शेषकाळमां
सेंकडो नानांमोटा गामोने पावन कर्यां. काठियावाडना हजारो माणसोने महाराजश्रीना
उपदेश प्रत्ये बहुमान प्रगट्युं. अंतरात्मधर्मनो उद्योत घणो थयो जे गाममां
महाराजश्रीनुं चार्तुमास होय त्यां बहारगामनां हजारो भाईबहेनो दर्शनार्थे जतां अने
तेमनी अमृतवाणीनो लाभ लेतां. महाराजश्री श्वेताम्बर संप्रदायमां रह्या होवाथी
व्याख्यानमां मुख्यत्वे श्वेताम्बर शास्त्रो वांचता (जोके छेल्ला वर्षोमां समयसारादि पण
सभा वच्चे वांचता हता.) परंतु ते शास्त्रोमांथी, पोतानुं हृदय अपूर्व होवाथी, अन्य
व्याख्याताओ करतां जुदी ज जातना अपूर्व सिद्धांतो तारवता, विवादना स्थळोने
छेडता ज नहि. गमे ते अधिकार तेओश्री वांचे पण तेमां कहेली हकीकतोने अंतरना
भावो साथे मींढवीने तेमांथी एवा अलौकिक आध्यात्मिक न्यायो काढता के जे क््यांय
सांभळवा न मळ्या होय. ‘जे भावे तीर्थंकरनामकर्म बंधाय ते भाव पण हेय
छे....शरीरमां रोमे रोमे तीव्र रोग थवा ते दुःख ज नथी, दुःखनुं स्वरूप जुदुं
छे...व्याख्यान सांभळीने घणा जीवो बूझे तो मने घणो लाभ थाय एम माननार
व्याख्याता मिथ्याद्रष्टि छे....आ दुःखमां समता नहि राखुं तो कर्म बंधाशे–एवा भावे
समता राखवी ते पण मोक्षमार्ग नथी...पांच महाव्रत पण मात्र पुण्यबंधना कारण छे.’
आवा हजारो अपूर्व न्यायो महाराजश्री व्याख्यानमां अत्यंत स्पष्ट रीते लोकोने
समजावता. दरेक व्याख्यानमां महाराजश्री सम्यग्दर्शन पर अत्यंत अत्यंत भार मूकता.
तेओश्री अनेक वार कहेता के “शरीरनां चामडां ऊतरडीने खार छांटनार उपर पण
क्रोध न कर्यो–एवां व्यवहार चारित्रो आ जीवे अनंतवार पाळ्यां छे, पण सम्यग्दर्शन
एकवार पण प्राप्त कर्युं नथी. लाखो जीवोनी हिंसाना पाप करतां मिथ्यादर्शननुं पाप
अनंतगणुं छे.....समकित सहेलुं नथी. लाखो करोडोमां कोईक विरल जीवने ज ते होय
छे. समकिती जीव पोतानो निर्णय पोते ज करी शके छे, समकिती आखा ब्रह्मांडना
भावोने पी गयो होय छे. आजकाल तो सौ पोतपोताना घरनुं समकित मानी बेठा छे.
समकितीने तो मोक्षना अनंत सुखनी वानगी प्राप्त थई होय छे. समकितीनुं ते सुख,
मोक्षना सुखना अनंतमां भागे होवा छतां अनंत छे.’ अनेक रीते, अनेक दलीलोथी,
अनेक प्रमाणोथी, अनेक द्रष्टांतोथी समकितनुं अद्भुत माहात्म्य तेओश्री लोकोने
ठसावता. महाराजश्रीनी जैनधर्म परनी अनन्य श्रद्धा, आखुं जगत न माने तोपण
पोतानी मान्यतामां पोते एकला टकी रहेवानी तेमनी अजब द्रढता अने अनुभवना
जोरपूर्वक नीकळती तेमनी न्यायभरेली वाणी भलभला नास्तिकोने विचारमां नाखी
देती अने केटलाकने आस्तिक बनावी देती. ए केसरीसिंहनो सिंहनाद पात्र जीवोना