Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : १प :
तूटेलो भक्तिनो प्रवाह फरीने वहेवा लागतो. कोई कोई पश्चात्ताप करता के ‘महाराज
आपना विषे तद्न कल्पित वातो सांभळी अमे आपनी घणी आशातना करी छे, घणां
कर्म बांध्या छे, अमने क्षमा आपजो.’ आ रीते जेम जेम महाराजश्रीना पवित्र
उज्जवळ जीवन तेम ज आध्यात्मिक उपदेश विषे लोकोमां वात फेलाती गई, तेम तेम
वधारे ने वधारे लोकोने महाराजश्री प्रत्ये मध्यस्थता थती गई अने घणाने सांप्रदायिक
मोहने कारणे दबाई गयेली भक्ति पुनःप्रगटती गई. मुमुक्षु अने बुद्धिशाळी वर्गनी तो
महाराजश्री प्रत्ये पहेलांना जेवी ज परम भक्ति रही हती. अनेक मुमुक्षुओना
जीवनाधार कानजीस्वामी सोनगढमां जईने रह्या, तो मुमुक्षुओनां चित्त सोनगढ तरफ
खेंचायां. धीमे धीमे मुमुक्षुओनां पूर सोनगढ तरफ वहेवा लाग्यां. सांप्रदायिक मोह
अत्यंत दुर्निवार होवा छतां, सत्ना अर्थी जीवोने संख्या त्रणे काळे अत्यंत अल्प होवा
छतां, सांप्रदायिक मोह तेमज लौकिक भयने छोडीने सोनगढ तरफ वहेतां सत्संगार्थी
जनोनां पूर दिनप्रतिदिन वेगपूर्वक वधतां ज जाय छे.
परिवर्तन कर्या पछी पू. महाराजश्रीनो मुख्य निवास सोनगढमां ज छे.
महाराजश्रीनी हाजरीने लीधे सोनगढ एक तीर्थधाम जेवुं बनी गयुं छे. बहारगामथी
अनेक मुमुक्षु भाईबहेनो महाराजश्रीना उपदेशनो लाभ लेवा सोनगढ आवे छे. दूर
देशोथी घणा दिगंबर जैनो, पंडितो, ब्रह्मचारीओ वगेरे पण आवे छे. बहारगामना
माणसोने जमवा तथा ऊतरवा माटे त्यां एक जैनअतिथिगृह छे. केटलाक भाईओ
तथा बहेनो त्यां घर करीने कायम रह्यां छे. केटलाक सत्संगार्थीओ थोडा महिनाओ माटे
पण त्यां घर करीने अवारनवार रहे छे. बहारगामना मुमुक्षुओनां हाल (सं.
१९९९मां) त्यां चाळीसेक घर छे. (अत्यारे सं. २०२प मां आ संख्या लगभग २००
श्री जैन स्वाध्यायमंदिर अने धर्मचर्या
पू. महाराजश्रीए जे मकानमां परिवर्तन कर्युं ते मकान नानुं हतुं. तेथी ज्यारे
घणा माणसो थई जतां त्यारे व्याख्यान वांचवानी अगवड पडती. पर्युषणमां तो बीजे
स्थळे व्याख्यान वांचवा जवुं पडतुं. आ रीते मकानमां माणसोनी समास नहि थतो
होवाथी भक्तोए सं. १९९४ मां एक मकान बंधाव्युं अने तेनुं नाम ‘श्री जैन
स्वाध्यायमंदिर’ राख्युं. महाराजश्री हालमां त्यां रहे छे. लगभग आखो दिवस
स्वाध्याय ज चाल्या करे छे. सवारे तथा बपोरे धर्मोपदेश अपाय छे. बपोरना
धर्मोपदेश पछी भक्ति थाय छे. रात्रे धर्मचर्चा चाले छे. धर्मोपदेशमां तथा ते सिवायना
वांचनमां त्यां भगवान कुंदकुंदाचार्यनां शास्त्रो, तत्त्वार्थसार, गोम्मटसार, षट्खंडागम,
पंचाध्यायी, पद्मनंदिपंचविंतशतिका, द्रव्यसंग्रह, मोक्षमार्गप्रकाशक, श्रीमद् राजचंद्र