* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: १६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
वगेरे पुस्तको वंचाय छे. त्यां आवनार मुमुक्षुनो आखो दिवस धार्मिक आनंदमां पसार
थई जाय छे.
समयसार अने कुंदकुंदाचार्य भगवान तथा श्री सीमंधर भगवान
प्रत्येनी भक्ति
परम पूज्य अध्यात्मयोगी गुरुदेवने समयसारजी प्रत्ये अतिशय भक्ति छे तेथी
जे दिवसे स्वाध्यायमंदिरनुं उद्घाटन थयुं ते ज दिवसे एटले सं. १९९४ ना वैशाख वद
८ ने रविवारना रोज स्वाध्यायमंदिरमां श्री समयसारजीनी प्रतिष्ठा करवामां आवी छे.
श्री समयसारजीप्रतिष्ठाना महोत्सव पर बहारगामथी लगभग ७०० माणसो आव्या
हतां. महाराजश्री समयसारजीने उत्तमोत्तम शास्त्र गणे छे. समयसारजीनी वात करतां
पण तेमने अति उल्लास आवी जाय छे. समयसारजीनी प्रत्येक गाथा मोक्ष आपे एवी
छे एम तेओश्री कहे छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यना बधां शास्त्र पर तेमने अत्यंत प्रेम छे.
‘भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनो अमारा पर घणो उपकार छे, अमे तेमना दासानुदास
छीए’ एम तेओश्री घणी वार भक्तिभीना अंतरथी कहे छे. श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्य
महाविदेहक्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधरभगवानना समवसरणमां गया हता अने
त्यां तेओश्री आठ दिवस रह्या हता ए विषे महाराजश्रीने अणुमात्र शंका नथी.
तेओश्री घणी वार पोकार करीने कहे छे: ‘कल्पना करशो नहि, ना कहेशो नहि, ए वात
एम ज छे; मानो तो पण एम ज छे, न मानो तो पण एम ज छे. यथातथ्य वात छे,
अक्षरश: सत्य छे, प्रमाणसिद्ध छे.’ श्री सीमंधरप्रभु प्रत्ये गुरुदेवने अपार भक्ति छे.
कोई कोई वखत सीमंधरनाथना विरहे परम भक्तिवंत गुरुदेवनां नेत्रोमांथी अश्रुनी
धारा वहे छे.
जैनधर्मनी श्रद्धा अने प्रचार
वीतरागना परम भक्त गुरुदेव कहे छे के– ‘जैन धर्म ए कोई वाडो नथी. ए
तो विश्वधर्म छे. जैन धर्मनो मेळ अन्य कोई धर्म साथे छे ज नहि. जैन धर्मोनो ने
अन्य धर्मोनो समन्वय करवानो प्रयत्न रेशमनो ने कंताननो समन्वय करवाना प्रयत्न
जेवो वृथा छे.’ दिगंबर जैन धर्म ते ज वास्तविक जैन धर्म छे अने आंतरिक तेम ज
बाह्य दिगंबरता विना कोई जीव मोक्ष पामी शके नहि एम तेमनी द्रढ मान्यता छे.
तेओश्री कहे छे के– ‘स्वानुभूतियुक्त सम्यग्दर्शन संप्राप्त करी, पछी शुद्धात्मामां विशेष
स्थिर थई, ज्यारे जीव एवी आंतरिक शुद्ध दशाए परिणमे के बहारमां पण ते
(अंतरिक सहज दशाने अनुरूप) यथाजातरूपता–दिगंबरता–सहजपणे (हठ विना)
धारण करे अने अंतर्बाह्य सर्वविरतदशाए सदा वर्तें, त्यारे ज ते