
अमे दास छीए. सर्वज्ञप्रणीत दिगंबर जैन शासनना महान उपासक गुरुदेवश्री मारफत
समयसार, प्रवचनसार, पंचाध्यायी, मोक्षमार्गप्रकाशक वगेरे अनेक दिगंबर पुस्तकोनो
घणो घणो प्रचार काठियावाडमां थई रह्यो छे. सोनगढना प्रकाशन खातामांथी गुजराती
समयसारनी २००० नकलो छपाईने तुरत ज खपी गई. ते सिवाय, समयसार–गूटको,
समयसार–हरिगीत, समयसार उपरनां प्रवचनो, अनुभवप्रकाश वगेरे घणां पुस्तको
त्यां छपायां अने काठियावाडमां फेलायां. ते उपरांत आत्मसिद्धिशास्त्रनी हजारो प्रतो
त्यांथी प्रकाशित थई प्रचार पामी छे. गुजरात काठियावाडना अध्यात्मप्रेमी मुमुक्षुओने
गुजराती भाषामां आध्यात्मिक साहित्य सुलभ थयुं छे. काठियावाडमां हजारो मुमुक्षुओ
तेनो अभ्यास करता थया छे. केटलांक गामोमां पांच दश पंदर मुमुक्षुओ भेगा थईने
गुरुदेव पासेथी ग्रहण करेला रहस्य अनुसार समयसारादि उत्तम शास्त्रोनुं नियमित
वांचन मनन करे छे. आ रीते परम पूज्य गुरुदेवनी कृपाथी परम पवित्र श्रुतामृतना
धोरिया काठियावाडना गामे गाममां वहेवा लाग्या छे. अनेक सुपात्र जीवो ए
जीवनोदकनुं पान करी कृतार्थ थाय छे.
छे. अने सौराष्ट्र–गुजरातनी सीमा वटावीने अखिल भारतवर्षना मोटा भागमां
बहोळो प्रचार पाम्युं छे. चेतनद्रव्य अने सम्यग्दर्शनना महिमाने तथा सत्पुरुषार्थना
पंथने प्रकाशनारुं ए साहित्य भारतना अनेकानेक स्वाध्यायप्रेमी जिज्ञासु जीवोने
जिनेन्द्रप्रणीत सन्मार्गनुं लक्ष कराववामां निमित्तभूत बने छे.
एक परमाणुमात्रने हलाववानुं सामर्थ्य धरावतो नथी, तो पछी देहादिनी क्रिया
आत्माना हाथमां कयांथी होय? ज्ञानी ने अज्ञानीमां आकाश–पाताळना अंतर जेवडो
महान तफावत छे, अने ते ए छे के अज्ञानी परद्रव्यनो तथा रागद्वेषनो कर्ता थाय छे
अने ज्ञानी पोताने शुद्ध अनुभवतो थको तेमनो कर्ता थतो नथी. ते कर्तृत्वबुद्धि
छोडवानो महा पुरुषार्थ दरेक जीवे करवानो छे. ते कर्तृत्वबुद्धि ज्ञान विना छूटशे नहि.
माटे तमे ज्ञान करो.’ –आ तेओश्रीना उपदेशनो प्रधान सूर छे, ज्यारे कोई श्रोताओ
कहे के ‘प्रभो! आप तो मेट्रिकनी ने एम. ए नी वात करो छो;