* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : १९ :
अने न्याययुक्त छे. आपना शब्दे शब्दे वीतरागदेवनुं हृदय प्रगट थाय छे; अमे वाक््ये
वाक््ये वीतरागदेवनी विराधना करता हता. अमारुं एक वाक््य पण साचुं नहोतुं.
शास्त्रमां ज्ञान नथी, ज्ञानपर्यायमां ज्ञान छे–ए वातनो अमने हवे साक्षात्कार थाय छे.
शास्त्रोए गायेलुं जे सद्गुरुनुं माहात्म्य ते हवे अमने समजाय छे. शास्त्रोनां ताळां
उघाडवानी चावी वीतरागदेवे सद्गुरुने सोंपी छे. सद्गुरुनो उपदेश पाम्या विना
शास्त्रोनो उकेल थवो अत्यंत कठिन छे.’
अध्यात्म–मस्तीथी भरपूर, चमत्कारी व्याख्यान–शैली
परम कृपाळु गुरुदेवनुं ज्ञान जेवुं अगाध ने गंभीर छे तेवी ज तेमनी
व्याख्यानशैली चमत्कारभरेली छे. तेओश्री कहेवानी वातुं एवी स्पष्टताथी, अनेक सादा
दाखलाओ आपीने, शास्त्रीय शब्दोनो ओछामां ओछो प्रयोग करीने समजावे छे के
सामान्य मनुष्य पण ते सहेलाईथी समजी जाय छे. अत्यंत गहन विषयने पण अत्यंत
सुगम रीते प्रतिपादित करवानी गुरुदेवमां विशिष्टशक्ति छे. वळी महाराजश्रीनी
व्याख्यानशैली एटली रसमय छे के जेम सर्प मोरली पाछळ मुग्ध बने छे तेम श्रोताओ
मंत्रमुग्ध बनी जाय छे; समय क्यां पसार थई जाय छे तेनुं भान पण रहेतुं नथी.
स्पष्ट अने रसमय होवा उपरांत महाराजश्रीनुं प्रवचन श्रोताओमां अध्यात्मनो प्रेम
उत्पन्न करे छे. महाराजश्री प्रवचन करतां अध्यात्ममां एवा तन्मय थई जाय छे,
परमात्मदशा प्रत्येनी एवी भक्ति तेमना मुख पर देखाय छे के श्रोताओने तेनी असर
थया विना रहेती नथी. अध्यात्मनी जीवंतमूर्ति गुरुदेवना देहना अणुए अणुमांथी
जाणे अध्यात्मरस नीतरे छे; ए अध्यात्ममूर्तिनी मुखमुद्रा, नेत्रो, वाणी, हृदय बधां
एकतार थई अध्यात्मनी रेलंछेल करे छे अने मुमुक्षुओनां हृदयो ए अध्यात्मरसथी
भींजाई जाय छे.
आ काळे मुमुक्षुओनां महाभाग्य
गुरुदेवनुं व्याख्यान सांभळवुं ए एक जीवननो लहावो छे. तेमनुं व्याख्यान
सांभळ्या पछी अन्य व्याख्याताओना व्याख्यानमां रस पडतो नथी. तेमनुं व्याख्यान
सांभळनारने एटलुं तो स्पष्ट लागे छे के ‘आ पुरुष कोई जुदी जातनो छे. जगतथी ए
कांईक जुदुं कहे छे, अपूर्व कहे छे. एना कथन पाछळ कोई अजब द्रढता ने जोर छे.
आवुं क्यांय सांभळ्युं नथी.’ महाराजश्रीना व्याख्यानमांथी अनेक जीवो पोतपोतानी
पात्रता अनुसार लाभ मेळवी जाय छे, केटलाकने सत् प्रत्ये रुचि जागे छे, कोई कोई ने
सत्समजणना अंकुर फूटे छे अने कोई विरल जीवोनी तो दशा ज पलटाई जाय छे.
अहो! आवुं अलौकिक पवित्र अंतर्परिणमन–केवळज्ञाननो अंश, अने